Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

View full book text
Previous | Next

Page 83
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीविशेषण वत्यां ॥ १७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इयरेयराव रणया अहवा णिकारणावरणं ॥ १९४ ॥ तह य असव्वष्णुतं असव्वदरिसणत्तणपसंगो य एगंतरोवओगे जिणस्स | दोसा बहुविहीया ॥ १९५ ॥ ठिकालं जह से दंसणणाणाणमणुवओगंवि । दिट्ठमत्राणं तह ण होइ किं केवलाणंपि १ १९६ ।। तुल्लेऽवि णाणदंसणसन्भावे किह णु जुगवउवओगो । छउमत्थस्साणिट्ठो इडोवि 'जिणस्स दुविहोऽवि ? || १९७॥ सव्वक्खीणा वरणो अह मण्णइ केवली ण छउमत्थो । तो जुगवमजुगवपि च उवओगविसेसणं तेसिं ॥। १९८ ।। देसक्खए अजुतं जुगवं कसिणोभओवजोगित्तं । देसोभओवओगो पुण हैय पडिसिज्झए कीस १ । १९९ ।। अह णेवेस उ घेप्पउ जह छउमत्थस्स तह जिणस्सावि । | दोहवि उवओगाणं एगस्स ये एगसमयीम्म || २०० || तो भणइ एव मिच्छा उभयावरणक्खओत्ति केवलिणो। उवउत्तरगयरे जेणेगयरस्स आवरणं ॥ २०१ || भण्णइ भिष्णमुहुत्तोवओगकालेऽवि तो तिणाणस्स । मिच्छा छाबडा सागरोवमाई खओवसमो ॥ २०२ ॥ अह गवि एवं तो सुण जहेव खीणंतराइओ अरहा । संतवि अंतराइयखयम्मि पंचप्पयारम्मि || २०३ || सययं ण देइ लहइ व भुंजइ उवभुंजई य सव्वन्नू । कज्जम्मि देइ लहइ अ झुंज अ तहेव एयमि ॥ २०४ ॥ देतस्स लभतस्स व भुंजंत|स्सवि जिणस्स एस गुणो । खीणंतराइयत्ते जं से विग्धो ण संभवइ || २०५ ।। उवउत्तस्सेमेव य णाणम्मि व दंसणम्मि व जिणस्स । खीणावरणगुणोऽयं जं कसिणं मुणइ पासइ वा ॥ २०६ ॥ तो भणइ केवलाणं पत्तो इयरेयरावरणदोसो । भण्णइ चउणाणिस्सवि स एव दोसो समाविसह । २०७ ।। एवं विणावि णामं कारणमुप्पायविगमया पत्ता । एवं च सह विण्णाणुब्भवो कह णु १ सेसं. २, ३ मण्ण सि. ४ व. य. ५ पुणाइ प. ६ एययरो, ७ स्स य, ८ विग्धे विग्धं. For Private and Personal Use Only ४५ विशेषः ॥ १७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120