Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
INI
विशेषः बीजसजीवत्वचचा
वशषण | पिट्ठाईणमग्गहणं ॥ २६५ ।। पच्छित्तंपि य तुल्लं बहुसो बीअहरिओवरोहम्मि । दिष्णं ण य तं जुज्जइ जइ णिज्जीवाई बीयाई वत्यां
| ॥ २६६ ।। आह अणेगतोऽयं पच्छित्तस मग्गणा सजीवम्मि । जे पलमज्जाईसुवि दीसइ पच्छित्तसाहम्मं ॥ २६७ ॥ भण्णइ मया ॥ २२॥ | य दोसा जह मज्जाईसु तह ण बीएसु । दीसंति केइ दोसा सजीवत्तं पमोत्तूणं ।। २६८ ॥ अहव मई पच्छित्तं अणवत्थावारणत्थ
8 मेयंति । पिट्ठाईणं गहणं ण होज्ज तो सबकालंपि ॥ २६९ ॥ होज्जा व काणिव जइ तव सजीवाईपि सुकवीयाई । तो तप्प| रिहरणत्थं जुज्जेज्ज व सेसपरिहारो ॥ २७० ॥ जम्हा पुण सव्वाई निज्जीवाई च सुकचीयाई । तेणाजुलं वज्जणमणवत्थावारणत्थं
भो! ॥ २७१ ।। अहव मइ सुकबीए गेण्हंतो मा कयाई णीले वि । गेण्हेज्ज तपि तो तप्पसंगविणिवारणमिणति ॥ २७२ ।। एवं 18| तो सुक्काणं मूलाईणंपि जुत्तमग्गहणं । माऽइप्पसंगदोसा सज्जीवाईपि गेण्हेज्जा ॥ २७३ ।। को वाऽभिणिवेसो ते जेणेच्छसि जिण
मयं सतकाए । ण य जुत्तं तकाए सब्वष्णुमयं णिसेहेतुं ॥ २७४ । आह फुडं चिय भणियं णणु पण्णवणापए विसेसेउ । जोणीमत्तं | बीयं ण सजीवमिमाए गाहाए ॥ २७५ ।। जोणिन्भूए बीए जीवो वक्कमइ सो अ अण्णो वा । जोवि य मूले जीवो सोवि अ पत्ते पढमयाए ॥ २७६ ॥ भण्णइ सइ जोणीए सच्चित्ताचित्तमीसभावम्मि । जइ जोणी सज्जीवं व होज्ज बीअत्ति को दोसो ! ॥२७७।। सब्भावे सारिक्खे वसुंधराईसु जीवदेहत्ते । समईयसंभवाइसु भूअसई बुहा बेंति ॥ २७८ ॥ जोणीम्भूयं बीयंति जमुत्तं तत्थ भूय. | सद्दोऽयं । जीवत्ते सारिक्खे सम्भावे वा समाउज्जो ॥ २७९ ॥ जोणिन्भूयं जस्स उ जोणीभूयंति जति जीवते । जोणी चेव सरूवं
१ मत्तेणि सजीवत्तं. २ तं. ३ पिंडाईण
CROCHERROADCARCIA
सा॥२२॥
C
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120