Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
View full book text
________________
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kcbatirth.org
ऋषभ
श्रीविशेषण ४ वरसगासे । सेज्जसो च्चिय साहइ अट्ट भवे सामिणा समयं ॥ २९४ ॥ जंबुद्दीवुत्तरकुरुसण (सुर) दंसण मिहुण जाइसंभरणं । तह वत्यां
विशेषः | ईसाणसिरिप्पभविमाणललियंगओ देवो ॥ २९५ ॥ देवी सयप्पभाऽहं सुरज्जइ परिहाणि पुच्छणा कहणं । जंबुद्दीवे अहयं अवर॥२४॥ विदेहे अहेसीय ॥ २९६ ॥ विजयम्मि गंधिलावइवेयड्डे दाहिणिल्लसेढीए । गंधारजणवयम्मी गंधसमिद्धे पुरवरम्मि ॥ २९७ ॥
श्रेयांस अइबलपुत्ता सयवलपुत्तो राया महाबलो णाम । संभिन्नसोयमंती सड्डोऽमच्चो ये संबुद्धो ॥ २९८ ॥ नट्टम्मि सयंबुद्धावबोहणं
भवाः गीयविलइयाईहिं । रसभंग कोव संभिन्नसोय वाए जिओ सो य ।। २९९ ॥ टिट्टिभि-रयणागर-काक-जंबु-इंगालदाहगाईहिं । अइबलसुरदसणभद्दसालसंबोहसारणया ॥३०० ॥ हरियंददेवकुरुमई कुरुचंदामच्चदेवसंबोहो । नंदण अमिअजसामिअतेयकहणमाससेसाऊ ॥ ३०१ ॥ संवरण मरण देवो इहति नंदीसरागमो चयणं । देवस्सई तुह मज्झवि जंबुद्दीवे विदेहम्मि ॥ ३०२ ॥ विज | यम्मि पुक्खलावई नामे णयरीइ पुंडरगिणीए । णिववइरसेण गुणवइ धूयाऽहं सिरिमई जाया ॥ ३०३ ॥ जइकेवलदेवालोय जाइ
संभरणमाणवे इच्छा । धाई पुच्छणकहणं धायइसंडम्मि पुब्बद्धे ॥ ३०४ ॥णंदिअगामे णिण्णामियत्तहँ मंगलावईविजए । अंबर| तिलग युगंधर संवरण सुरवरागमणं ॥ ३०५ ॥ सणिआण मरण देवी सविमाण जुगंधराहिगमणं च। चयणमिहं चित्तपडा धाई हैणयण णिवत्ता य ॥ ३०६ ॥ निवसमुदय णयणागम कहणं ध वयरजंघसंभरणं । णिवकहण जंबुदीवे सलिलावइवीयसोगाए Iल॥२४॥ ॥ ३०७ ॥ जियसत्तुमणोहरिकेकईण अयलो विभीसणोऽवि सुया । णिवमरणदेविदिक्खा संगारा लंतगसुरोऽहं ॥ ३०८ ॥ निग्गम
१.सणमि मिहुणेण २ सुत्थणं ३ भत्ता ४ व ५ आइच्चजसामि०६. इओ ७ ०त्ति अह
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120