Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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विशेषः
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श्रीविशेषण सव्वहेच तं गत्थि । सिटुं चउविअप्पं च दंसणं सासणे बहुसो ॥ १६५ ॥ आह णउ सव्वसोच्चिय केवलिणो णत्थि दंसणं किंतु । ४५ वत्यां
णाणंति देसणं त अ एकं चिअ केवलं तस्स ।। ।। १६६ ।। जइ एगत्तं दोण्हवि ता एगयरोवओगया जुत्ता । इयरा फुडमण्णत्तं पुणरुत्त निरत्थया वावि ॥ १६७ ॥ पत्तेयावरणत्तं कह वा बारसविहोवओगत्तं। सागाराणागारं सिद्धाण य लक्खणं कह णु ? ॥१६॥ | णाणस्स जाणिअव्वे विसओ जइ दंसणस्स दट्ठव्वे । जुत्तं ते' इहरा पुण लक्खणवेहम्ममावहणं ॥१६९।। अहवा जइ णाणेणवि दीसह णज्जइ य दंसणेणावि । एवं खु णाणदंसणपरूवणा कप्पणामेत्तं ॥ १७० ॥ एवं च सेसदसणणाणाणवि णाम पत्तमेगत्तं । सिद्धाणि |
अ पत्तेयं दंसणणाणाणि समयम्मि ॥१७१॥ कह वा जिणेण भणिों दोण्णि अहं णाणदंसणवाए । सोमिलपुच्छाए जइ दसणणाणाAणमेगतं ॥ १७२ ॥ आह-जैतोच्चिय जीवाणं अणाई ( नण्णाई ) तेण तेसिमेगत्तं । भण्णइ तो सेसाणपि णाणाणं पत्तमेगतं
॥१७३ ॥ ताईपि जीवभावाणण्णाई जे य सेसया भावा । अण्णोऽण्णलिंगभिष्णा खओवसमियादओ पंच ॥१७४॥ सइ जीवाण४ ण्णत्ते णाणत्तं तव मयं अहो तेसिं । ण मयं केवलदसणणाणाणं एवमिच्छा ते ॥१७५।। जह जीवाणनाणं णाणतं सेसभावभेयाणं ।
तह जीवाणऽण्णाणं णाणत्तं केवलाणंपि ॥ १७६ ।। अह भणियं च जिणमए जाणइ पासइ अ केवलण्णाणी । णवि दंसत्ति तम्हा दणाणं चिय दंसणं तस्स ॥ १७७ ॥ भण्णइ जहोहिणाणी जाणइ पासइ य भासियं सुत्ते। ण य णाम ओहिदंसणणाणेगत्तं तह इमंपि ॥ १७८ ॥ जं पासइत्थ भणियं तम्हा तं दंसणेण घेत्तव्वं । जेणें विससियमेअं पण्णवणदसाइसुत्तेसु ॥ १७९ ॥ खीणे पंचविह
Ix॥१५॥ १ तो, २ आह जओ जीवाणं णाइ. ३ दंसणित्ति. ४ जाण,
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