Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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४१-४५ विशेषाः
वत्यां
श्रीविशेषण चकिणोत्ति दुवे । जयणामा य णमिमि अण्णेहिं पकप्पियं एयं ॥ १३९ ॥ तिण्ह महापउमाईण वीस पण्णरस बारस धणूणि ।
बावीसवीसचउद्दस धणूणि उच्चत्तमण्णेसि ॥ १४० ॥ण विसंवयंति पढम उच्चत्ताईणि तेण सपमाण । विघडंति जिणेहिं समं | 18 बीयादेसम्मि तो वज्जो ॥ १४१ ॥ ४०।।
बंधिसयवीयभंगो जुज्जइ जइ किण्हपक्खियाईण । तो सुक्कपक्खियाई पढमे भंगे कहं गेज्झा ॥१४२॥ पुच्छाणंतरकालं पइ प-1 Pढमो सुक्कपक्खियाईणं । इयरेसिं अवसिटुं कालं पइ बीअओ भंगो ॥ १४३ ॥ ४१ ॥ (भ. ९२९)
पट्ठवणसए स किण्हु हु समासओ वण्णिओ उ चउम्भंगो । कहब समज्जिणणसए गमणिज्जा अत्थओ भंगा ॥१४४॥ पट्ठवण-13 लसए भंगा पुच्छा भंगाणुलोमओ वच्चा । कम्मसमज्जिणणसए बाहुल्लाओ समाओज्जा ॥ १४५ ॥४२।। (भ. ९४१) का अप्पडिलेहाईसु अ णवण्ह भंगाण संभवे सत्त । उवहिस्स य उवघायाँ पुणरुत्ता कीस णिदिवा ॥१४६॥ पगडा दगतीराइसु
पच्छित्तादेसबहुलया कीस । तेसिं तिविहो य कहं पूरइ कप्पो अपुणरुत्तो? ।। १४७ ॥ दो किर समाणरूवा बीय तइअ अभितरत्ति तणाभिहिया । जह पच्छित्तवसाओ पुरिसाणं भेयसंयोगा ॥१४८॥ आएसविसेसा किर उवघाया उवहिणो तहा कप्पो । तेसिंति जहा
सुत्ते पण्णरसाणंतरा सिद्धा ॥१४९॥ एकम्मिवि अवराहे परिणामविसेसओ जओ बहुधा । तो तयणुवत्तिओ च्चिय पच्छित्तादेसवा| हुल्लं ।। १५० ॥॥४३॥
१ संघाया. २ पडगा. ३ बहुया,
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