Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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दाने दृष्टान्ताः
श्रीयशो- देवीये प्रत्या ख्यान
स्वरूपे
॥२४॥
भविएणं ? ॥२८५।। बलएवमहामुणिणो तवस्सिणो संखधवलदेहस्स। बड्डाणा पाहेयं दिन्नं परमाए भत्तीए॥ २८६ ॥ संवेगपुलइएणं अणमिसबाहुल्ललोयणजुएणं । जाइस्सरहरिणेणंऽणुमोइयं तं च भावेणं ।। २८७॥ ते तिन्निवि सुरलोए पवरविमाणे महिड्डिया देवा । एगावसेसगम्भा उववन्ना दिव्ववादिधरा ॥ २८८ ।। अवरविदेहे गामस्स चिन्तओ रायदारुवणगमणं । साह भिक्खनिमित्तं सत्था होणे तहिं पासे ॥ २८९ ॥ दाणन्नपंथनयणं अणुकंप गुरूण कहण सम्मत्तं । सोहम्मे उववन्नो पलिआउसुरो महिड्डीओ ॥ २९० ।। लण य सम्मत्तं अणुकंपाए उसो सुविहियाणं । भासुरवरबादिधरो देवो वेमाणिओ जाओ ॥२९१।। चइऊण देवलोगा इह चेव य भारहम्मि वासम्मि । इक्वागुकुले जाओ उसुभसुयसुओ मरीइत्ति ॥ २९२ ।। तत्तो कमेण लढे केसवचक्त्तिणाइं सो जाओ। तिहुयणजणियाणंदो चरमजिणो बद्धमाणोत्ति ॥२९३ ॥ कयउन्नसालिभद्दा दरिद्दभावेऽवि पुव्वजम्मेसु । पत्तेसु सुद्धदाणं दाऊणं सुद्धबुद्धीया ॥ २९४ ॥ लोगच्छेरयभूयं रूवं रिद्धिं मुहं च लहिऊण । जाया महातवस्सी उत्तमपयसाहगा खिप्पं ॥ २९५ ॥ पासंगियभोगेणं वेयावच्चमिह मोक्वफलमेव । आणाआराहणओ अणुकंपाइ व्व विसयम्मि ॥ २९६ ॥ सुहतरुछायाइजुओ जह मग्गो होइ कस्सइ पुरस्स । एको अन्नो नेवं सिवपुरमग्गोवि इय ने
ओ ।। २९७ ॥ अणुकंप वेयावच्च पाविओ पढमगो जिणाईणं । तयजत्तगो उ इयरो सदेव सामन्नसाहणं॥२९८ ॥ ता नत्थि एत्थ दोसो पच्चक्खाएवि निरहिगरणमि । गुणभावाओ य तहा एवं च इमं हवइ सुद्धं ॥ एत्यत्ति-भक्तादिदानादौ ॥ २९९ ॥ फासियं पालियं चेव, सोहियं तीरियं तहा। किट्टियमाराहियं चेव, जएजेयारिसम्मि उ
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