Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीविशेषण (प्र.४८४) तिरिएसु णस्थि तित्थयरणामसंतति देसि समए । कह व तिरिओ न होही अयरोवमोडिकोडीए? ॥८१॥ तपि से २०-२४ वत्यां । मुनिकाइ यस्सेव तइअभवभाविणो विणिद्दिट्ट । अणिकाइयम्मि वच्चइ सब्बर्गईओवि ण विरोहो ॥ ८२ ॥ २० । . विशेषाः तिरिअनरसम्मदिट्ठी ण पंधई विमाणवज्जमाउंति । मणुएसु बंधइच्चिय कम्मप्पयडीण णिट्टि ।। ८३ ।। दरिसणविसेसओ तै| जहेह सासाणदरिसणस्सावि । सम्मत्तम्भंतरया ण य तेणामरगई नियमो ।। ८४ ॥ २१ छेवढे संघयण सुत्ते एगिदियाण पण्णत्तं । कम्मप्पगडीए कह बंधे उदए य तं नथि॥८५॥ सण्णी अ असण्णियत्ति य जह हा कालिअहेउदिट्टिवायाओ। एगिदियाणमेवं संघयणं ण य विसेसाओ ॥ ८६ ॥ २२ । I (भ.३९१) मोहनिमित्ता अट्ठवि बायरराए परीसहा कहणु । कीस व सुहमसरागे न होंति उवसामो सव्ये? ॥८७।। सत्त य| | परउच्चिय जेण बायरो जं च सावसेसम्मि । मग्गिल्लम्मि पुरेल्ले लग्गइ तो दंसणस्साचि ॥८८॥ लग्गइ पएसकम्मं पडुच्च सुहुमादओ 81 | गुणे अट्ठ । तस्स भणियाण सुहुमे ण तस्स सुहुमोदओवि जओ ॥ ८९ ॥ २३ । २ सयरीए मोहबंधट्ठाणा पंचादओ कया पंच । अनिअट्टिणो छलुत्ता णवादओदीरणापगए ॥९०॥ सयरीए दो विगप्पा सम्मा| मिच्छं समोहबंधम्मि । भणिया उईरणाए चत्तारि कहंणु होज्जाहि ? ॥ ९१ ॥ सयरीए पंचविहबंधगस्स दोण्ह उदओ विणिद्दिटो।। | चउराई छण्ह उदओ उदीरणाए पुणो भणिओ ॥९२॥ एको व दो व चउबंधगस्स सयरीए देसिया उदया । एको य विचउ पंच यते छच्चेवोदीरणा देसे ॥ ९३ ॥ सग वायरस्स संते ठाणा सयरीइ मोहणिज्जस्स । बारस उईरणाए दुगतेवीसाहिआ भणिया ॥ ९४ ॥ संजलणलोहचरिमत्तिभागसंखेज्जभागमेतीव । वढतस्स कहं बायरस्स को हवइ संतं ।। ९५ ॥ जइ वायरस्स बारस REARRIOR CAROGRESCRECASESCOCK For Private and Personal Use Only

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