Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 76
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेषाः श्रीविशेषण कीस णिअट्टिस्स पंच पडिसिद्धा । संता चउविहणिब्बंधगस्स किह वा भवे सत्त? ॥ ९६ ॥ संजलणलोहचरिमत्तिभागसंखेज्जभाग वत्यां मेत्तोऽवि । सत्तावीसोवसमो वायररागस्स किंण भवे ? ॥ ९७ ॥ संजलणाणं वासु सयरीए उवसमो समक्खाओ। मज्झिमकसाय॥१०॥ मीसे उईरणाईसु परिकहिओ ।। ९८ ॥ धुवमणुधावति माया धुवा सयं किंचि बायरनेवि । सचावीसोवसमे ण तस्स तो संतमेको ४ीय ॥ ९९ ॥ बंधाइविहाणविचित्तयावि रोगंभि भेसजोवमया । परिणामविचित्तत्तणभावाओ जुज्जए सव्वे ॥१०० ॥२४॥ भणियं सुत्ते छिन्नं चोदसपुब्बिम्मि पढमसंघयण । तम्मि अ अवट्टमाणे सव्व₹ कह गओ वइरो?॥१०१॥न य भणिअमिया | वइरो सव्वट्ठमिती न सुत्तणिदिट्ट । तेण तमनारिसच्चिय फुडं च णाणुत्तरविमाणं ॥ १०२ ॥ २५।। एगाई एगन्ता जवमझा सत्त तित्थवोच्छेया । अण्णेसि पलितपया एकेकगदुतिदुवेकेका ॥ १०३ ॥ २६ । (प्र.३९१) सुत्ते विन्भंगस्सवि परूविअंओहिदंसणं बहुसो। कीस पुणो पडिसिद्धं कम्मप्पयडीइ पगयम्मि? ॥१०४॥ विन्भंगेविहु भादरिसण सामण्णविसेसविसयतो सुत्ते । तं ता विसिट्ठमणगारमेत्तत्ताऽवहिविभंगाणं ॥ १०५॥ कम्मप्पयडी मयं पुण सागारेयरवि|सेसभावम्मि । ण विभंगणाणदंसणविसेसणमणिच्छितत्तणओ ॥ १०६ ॥२७ ।। समुच्छिमोरगाणं काओ जोअणपुहुत्तमुकोसं । तं च णव जाव भणियं बारस आसालियाकाओ ॥ १०७ ।।अवगाहणाअवसरे 13 माणं णिद्दिसइ जेण तस्सेव । तो भण्णइ तं मोत्तुं सेसाणं जोअणपुहुत्तं ॥ १०८ ॥ २८ ॥ IN होऊणं देवकया चउतीसाइसयबाहिरा कीस । पागारंबुरुहाइ अणण्णसरिसावि लोगम्मि ॥ १०९।। चोत्तीस किर णियया ते | गहिआ सेसया अणिययत्ति । सुत्तम्मि ण सगहिआ जह लद्धीओ विसेसाओ ॥ ११० ॥ २९॥ । ॥१०॥ For Private and Personal Use Only

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