Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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श्रीविशेषण विषमा मते असिशति । तेणं अद्वैगुलाहिअकरावयाहणा सिद्धा ॥ ४४ ॥ अहवाऽऽऊ जमुच्चत्तं च सुत्तभणियं जहण्णमियरं च ।। वत्यां IP सामच्छण विसेसा पंचसयादेसवयणं व ॥ ४५ ॥॥१४ ।
विशेपोः (प्र.३७९)जइ पोग्गलपरियडा संखाईआ वणस्सईकालो। तो अच्चंतवणस्सइजीवा कह णाम मरुदेवा ॥४६॥ होज्जव दणस्सईण हैन अमाइमिचमत एव हेऊओ । जमसंखेज्जा पोग्गलपरिअट्टा तत्वध्वत्थाणं ॥ ४७॥ कालेणेवइएणं तम्हा कुवंति कायप
लटं । सम्वेवि वणस्सइणो ठिइकालंते जह सुराई ।। ४८ ॥ पइसमयमसंखज्जा जेणुववति तो तदभत्थ । कायठिईए समया वणस्सईणं परीमाण ॥४९॥ कायठिईकालेणं तेसिमसंखेन्जयावहारेण । जिल्लेवणमावणं सिद्धीविय सव्वभव्याण ॥ ५० ॥णय * पच्चुप्पण्णवणस्सईण णिल्लेवणं न भव्वाण । जुत्तं होइन तं [न] जइ अच्चन्तवणस्सई णस्थि ॥५१॥ एवं चाणाइवणस्सईण अत्थित्तमस्थओ सिद्धं । भण्णइ इमावि गाहा गुरूवएसागया समए ॥५२॥जी-५०७.३८० अस्थि अणंता जीवा जेहिं न ली तसाइपरिणामो। तेवि अणताणता णिगोअवास अणुवसति ॥५३॥ अच्चंतवणस्सइणोवि संति एवं कुंडवि सिद्धम्मि । भावेअव्वो कह गहु तेसि कायढिईकालो ? ॥५४॥ सब्बेहि कह व जीवेहिं फासि सुअमणंतसो समए । पत्ताइ कहव बहुसो ठाणाई णारगाइणि ? ॥५५॥ दम्बिदियभाविंदिय पोग्गलपरियड रागदोसाई । भावेअब्वाई कहं सुत्ताई एवमाईणि? ॥५६॥ कह मविआणाईया सपज्जवसिअत्ति* देसिय मुत्ते । ण य भविएहिं रिरहिओ होही लोगोत्ति भणियमिणे ॥५७। गम्मइ जे सिज्झिस्संति ते अगाइसपज्जवसित्ति। तह
बहुसो सुत्ताई सिद्धते देसविसयाई ॥५८॥ तह कायठिईकालादओ विसेसे पडुच्च किरं जीवे । णाणाइवणस्सइणो जं संववहारबाहरिआ 18॥ ५९ ॥ (जी.५१) सिज्झति जेत्तिया किर इह संववहारजीवरासीओ । ऐति अणाइवणस्सइरासीओ तेत्तिआ तम्मि ॥६० ॥१५॥
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