Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीविशेषण वत्यां ॥ ५ ॥ *-%*% www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | (१२० २०२) ||१८|| सतगहणेण जे विमलवाहण परेण ते ण संगहिया । अणिउंजिज्झिय ते कुलगरत्तणं जेण कयवंता ॥ १९ ॥ पणरस कुलगरत्तणं सामण्णा उत्ति तेऽवि संगहिया । जत्थ दसहं सत्तगमणिअत्तं तत्थ तिगमाहूं ।। २० ।। ७ । ( भ. २९८ ज्ञा. १८३ प्रज्ञा. ५३५ ) तिरियाणं चारितं णिवारिअं तो कओ पुणो तेसिं । सुब्बइ बहुआणं चिय महन्वयारे। वर्ण समए १ ॥ २१ ॥ ण महव्वयसम्भावेवि चरणपरिणामसंभवो तेसिं । ण बहुगुणापि जओ केवलसंभूइपरिणामो || २२ || ८ | For Private and Personal Use Only ७-६ विशेषः ( स्था. १७८ म. ९६० ) सुत्ते चउसमयाओ णत्थि गईओ परा विनिद्दिट्ठा | जुज्जइ उ पंचसमया जीवस्स इमा गई लोए ।। २३ ।। जो तमतमविदिसाए समोहओ बंभलोगविदिसाए । उववज्जए गईए सो नियमा पंचसमयाए ॥ २४ ॥ उज्जुया य एगवका दुहओवकाई विनिदिट्ठा । जुज्जइ अ तिचउवका विणा न चउपंचसमयाए ।। २५ ।। उववायाभावाओ ण पंचसमयाउहवा न संताध्वी । भणिया जह चउसमया महलबंध ण संतावि ।। २६ ॥ ९ । निरइंदा तेरस पत्थडाइया अउणपण्ण सन्चग्गा । अण्णे अ सोलसाई पण्णा सग्गा कहं गेज्झा १ ।। २७ ।। दस तिअसहिया एकाहिया य णव सत्त पंच तिष्णेके । नरइंदर कमो खलु ओसरमाणो उ रयणाए ।। २८ ।। सोलस दसट्ट छप्पंच चेव चत्तारि चैत्र १ अवसर्पिण्यां सप्त उत्सर्पिण्यां दशेति स्थानाङ्गतात्पर्य, भगवत्यां प्रस्तुतवाचनायां यद्यपि सप्तक्ता: तथापि 'अथ चेह स्थाने कुलकरादि वक्तव्यता दृश्यते' इति वृत्तिपाठे न नियता वाचना, ततः कचित् 'पन्नरसे' त्यस्यापि संभव:, अत एव 'कचित् पंचदशापि दृश्यन्ते' इति ६ ॥ ५ ॥ स्थानाङ्गदशमस्थानवृत्तिरपि संगता ।

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