Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्या RECIES कच्चं पच्चक्खाणं इमं च मे सगई। भवत्ताए पत्तं कहं अहं निययवायाए ॥ ३१६ ॥ चइऊण साहुपुरओ निय-का शकटोयशोदेवीये लिवियणं लोविऊण भक्खमि । इय चिंतिय तं सगडं परिहरई सो दिओ सहसा ।। ३१७॥ मुणिवयणजायसद्धो न-ल दाहरणं रवइधूयाए बोहणानीमत्तं । सयलं नियवुत्तंतं कहेइ तीए सवित्थारं ॥ ३१८ ।। सयपालणत्तिदारं सपसंगं वन्नियंप्रत्याख्याख्यान अओ वोच्छं। पच्चक्खाणस्स फलं समासओ सुत्तनिद्दिटुं ।। ३१९ ।। एयं पच्चक्खाणं विसुद्धभावस्स होइ जीव नफले स्वरूप स्स । चरणाराहणजोगा निव्वाणफलं जिणा बिति ।। ३२० ।। पच्चक्खाणेण जिया थेवेणवि भावणाए चिन्नणं । दामन्त्र काद्याः ॥२६॥ | पावेंति सुहसमिद्धिं दामन्नगसत्तवइणोव्व ॥ ३२१ ।। दामन्नग कुलपुत्तो वहविग्ई पालिऊण ददचित्तो । तरिऊण आवयाओ जाओ भोगाण आभागी ॥ ३२२ ।। अमुणियफल सत्तपए निवइकलत्तं च कायमंसं च । चइऊणं सुरलोए उववन्नो सत्तवइओऽवि ॥ ३२३ ॥ पच्चक्खाणेण मुणी तवोविसेसेहिं चित्तरूवेहिं । नाणाविहारद्धीए सणंकुमारोव्व पार्वति ॥ ३२४ ॥ पच्चक्रवाणेण जिओ आसवदारस्स निग्गहं कुणई । संवरियासवदारो कम्मेहिं न | बज्झए कहवि ॥ ३२५॥ पच्चक्खाणेण तवो तवेण कम्माण निज्जरा होइ । निज्जरितकम्मकवओ जीवो पावेइ परमपयं ॥ ३२६॥ पच्चक्वाणामिणं सेविऊण भावेण जिणवरुद्दिटुं । पत्ता अणंतजविा सासयसोक्खं लहुं मो क्खं ।। ३२७ ॥ आवस्सयपंचासयपणवत्थुयविवरणाणुसारेणं | पच्चक्खाणसरूवं भणियं जसएवसूरीहिं।। ३२८ ॥ लापच्चक्रवरगणणाए गंथपमाणं सयाणि चत्तारि । नयणवसुरुद्दमाणो (१९८२) विकमनिववच्छरो एत्थ ।। ३२९ ।। ॥ इइ सिरिजसोएवमूरिसुत्तियं पच्चक्खाणसरूवं सम्मत्तं ॥ ग्रन्थानम् ४००॥ SECREATOR ॥२६॥ For Private and Personal Use Only

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