Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री आ ॥३०॥ उचिए काले विहिणा पत्तं जे फासियं तयं भणियं । तह पालियं तु असई सम्म उवओगपडियरियं प्रत्यायशोदेवीये|P॥ ३०१॥ गुरुदाणसेसभोयणसेवणयाए उ सोहियं जाण । पुन्नेऽवि थेवकालावस्थाणा तीरियं होइ ।। ३०२॥ भो ख्याने प्रत्या- यणकाले अमुगं पच्चक्वायंति भुंज किदिययं । आराहिय पगारेहिं सम्ममेएहिं निढवियं ॥ ३०३ ॥ फासियपमुह-18 शुद्धयः ख्यान 1 पयाणं भणियत्थाणंपि इह पुणो भणणं । मंदमासुमरणत्थं बहुसत्थपसिद्धिओ चेव ॥ ३०४॥ आह किमयं संते* विषयश्च स्वरूपे | पञ्चक्खेयम्मि अह असंतम्मि? । जइ संते तो जुत्तं साहीणे चागजोगाओ ॥३०५।। आहु असंते एवं सयंपि संढस्स ॥२५॥ बंभयारित्तं । तो विजमाणविसयं पञ्चक्खाणं हवइ सहलं ॥३०६॥ आचा०) बज्झाभावेवि इमं पच्चक्खंतस्स गुणकर चेव । आसवनिरोहभावा आणाआराहणाओ य ॥३०७॥ न य एत्थवि एगंतो सगडाहरणाइ एत्थ दिटुंतो । संतंपि नासह लहुं होइ असंतंपि एमेव ॥३०८|सगडोया(डस्सा)हरणं पुण किर केणइ माहणेण गीयत्थ । मुणिपुंगवपयमूले नाणाविहगोयरे नियमे ॥ ३०९ ॥ पडिवज्जंते बहुए तहाविहे माणवे निएऊणं । निग्गोयरात्त अहला निय|मा इइ मन्नमाणेणं ॥ ३१ ॥ उवहासबुद्धिण च्चिय निविसयंपि हु हवेज्ज जइ सहलं । पच्चक्खाणं मज्झविस फलं होउत्ति भणिऊणं ॥ ३११ ।। जावज्जीवपि इओ सगडं मे सव्वहा न भोत्तव्वं । नियमो एवंरूवो गहिओ साहू&ीण पच्चक्खं ।। ३१२॥ तस्सऽन्नया कयाई कंतारुत्तिन्नछुहकिलंतस्स । एगा नरवइधूया अववसणकए पयत्तेण ॥ ३१३ ॥ उ«लियजंघजुयं अप्पुव्वं माहणं पलोइंती। पकन्नमयं सगडं वियरइ पत्तीए काऊण ||३१४॥ तो सो तं दट्टणं चिंतइ साहहिं सोहणं भणिय । अस्संभविवत्थूणवि कहिंचि जह संभवो होइ ॥ ३१५ ॥ तो सब्वमेव स SHARADESH For Private and Personal Use Only

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