Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यशोदेवीये प्रत्याख्यान स्वरूप
R ECOM
गोमहिसिउट्टिअयएलगाण खीराणि पंच चत्तारि । दहिमाईया जम्हा उट्टीणं ताणि न हु होति ॥१७४ ॥ चत्तारि निर्विकृतिहुंति तेल्ला तिलअयसिकुसुभसरिसवाणं च । विगईओ सेसाई महुयफलाईण नो विगई ॥ १७२ ॥ दवगुडपिंड
प्रत्यागुडा दो मज्जं पुण कट्टपिट्ठनिष्फन्नं । मच्छियकोत्तियभामरभेयं च तिहा महं होइ ॥१७६ ॥ जलथलखहयर
ख्याने मंसं चम्मं वस सोणियं तिहेयंपि । आइल्लतिनि चलचल ओगाहिमगा य विगईओ ॥ १७७॥ चलचलसद्दीवया
विकृति
गतानि नेहोगाहेण जे उ पच्चंति । ओगाहिमगा नेया वडगाई ग्वज्जगविसेसा ।। १७८॥ तिण्डं घाणाण परओ एए विगई न हुँति जइन खिवे । अन्नंपि तत्थ नेहं तो ते कप्पंति जंभणियं ॥ १७९ ॥ सेसा न हुंति विगई अजोगवाहीण ते उ कप्पंति । परिभुज्जति न पायं जं निच्छयओ न नज्जंति ।। १८० ॥ एगेण चेव तवओ पूरेज्जइ पूयएण जो तावो । बीओवि स पुण कप्पड अखवियनेहतरो नवरं ॥ १८१ ॥ दहिअवयवओ मंथू विगई तकन होइ विगईओ। खीरं तु निरावयवं नवणीओगाहिम चेव ॥ १८२ ।। घयघहो पुण विगई वीसंदणमो य केइ इच्छति । तेल्लगुलाणमविगई सोमालियखंडमाईणि ॥ १८३ ॥ एत्थ य-घयघट्टो मेहाहुव वीसंदणमद्धदड्डषयमज्झे । छूढेहिं तंदुलेहिं जिणलं(जिण्णालं)होइ नायव्वं ॥१८४॥ सोमालियं वियाणह सन्निय तह सेल्लियं च ज विति। आदिग्गहणेण गहिया सक्करवरसालगाईवि ।। १८५ ॥ मज्जमहुणो तु खोला मयणा विगइओ पोग्गले पिंडो । रसओ पुण तदवयवो सो पुण नियमा भवे विगई ॥ १८६॥ मयकच्चसं तु खोला मंसं पुण पुग्गलं मुणेयव्वं । कालेज्जं पुण पिंडो
12॥१६॥ मंसरसो भन्नए रसओ ॥ १८७॥ खज्जूरमुद्दियादाडिमाण पीलुच्छुचिंचमाईणं । पिंडरसा न विगईओ नियमा
SACRACROCARE-RRCH
RRCOR
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120