Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
त्ताणतरमेव पमाओ खयं जाइ ॥ २२६ ॥ जमणाइभवभयो तस्सेव खयत्यनुज्जएणेह । जहगहियपालणेणं 31 पारणक यशोदेवीये है
विचार: अपमाओ सेवियम्वोत्ति ॥२२७॥३॥ अल नेत्थ पसंगणं संपइ वोच्छामि पारणविहाणं । साहण सावगाण य जह प्रत्याख्यान
भणियं पुत्वसूरीहिं ॥ २२८ ॥ सड्ढो पच्चक्रवाणे पुन्नेवि गए उ थेवकालम्मि । संपूइय तित्थयरं वंदित्ता तह य है स्वरूप भावेणं ॥ २२९ ।।दाऊण उचियदाणं पडिलाभिय साहुणो विसेसेणं । संभालिय परिवार काउं तस्सोचियं किचं
|॥ २३० ॥ उचियासणठाणगओ मंगलपाढं करेत्तु उवउत्तो । सुहधाउजोगभाधे किच्छेणमणाउलेण तहा ॥२०॥
॥ २३१ ॥ जम्हा भयकोहपरब्बसेण लुणि रीणतिसिएण । मणसा सेविज्जंतं अन्नं सम्मं न परिणमइ ॥२३२॥ सरिउं च विसेसेणं पच्चक्वायं इमं मए पच्छा । भुजह पगइविरुद्धं वज्जंतो जुतमाहारं ॥ २३३ ॥ एएणं चिय विहिणा समणावि कुणंति पारणं पायं । जो पुण तेसि विसेसो तमहं योच्छ समासेणं ॥ २३४ ॥ सुत्तत्थपोरिसीओ काउं संवेगभावियमई य । सुत्तुत्तविहाणेण य उवउत्तो हिडिंडं भिक्खं ॥ २३५ ॥ आलोइय तं विहिणा दंसिय गुरुणो करेन्तु उस्सग्गं । मज्झालोगस काउं मंगलाई य झाएत्ता ॥ २३६ ॥ विणएण पट्टवेत्ता सज्झायं काउ तो मुहुत्तागं । मंडलिय भुजमाणे पाहुणगाई णिमंतेउं ॥ २३७ ॥ इच्छेज्ज न इच्छेज्जा तहविय |पयओ निमंतए साह । परिमाणविसुद्धीए उ निज्जरा होअगहिएवि ॥ २३८ ॥ परिणामविसुद्धीए विणा उ गहिएऽवि निज्जरा थोवा । तम्हा विहिभत्तीए छंदिज्जा तह य वियरेज्जा ॥२३९॥ मंडलिभोई उ पुणो सत्तीए
RECEMORRORRECTORX
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120