Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org यशोदेवीये प्रत्या राः ख्यान में स्वरूपे ॥ १३॥ पारिद्वावणियागारणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेण वोसिरइ ॥ वार्थआहारागाराणं अत्यो एत्थंपितह मुणेयव्वो । जह पुब्वं निष्डिो नवरि विसेसी इमो नेओ ॥१४८॥ सूरस्मिारकाउग्गयम्मि सूरोदयवेलमाइओ काउं। अभतटुं पच्चक्खइ कायव्वमिणति गिण्हेइ ।। १४९ ॥ वोसिरह य भी चउहाहारं च जइ पुणो कुणइ । पोरिसिपुरिमेगासणअभत? तिविह आहारे ॥ १५० ॥ तो पाणगमुद्दिसिंड लेवाडेणेवमाइयं कुणइ । आगाराणं छक्कं तत्थ य सुत्तं इमं भणियं ॥ १५१ ॥ लेवाडेण वा १ अलेवाडेण वा २ अच्छेण वा ३ बहलेण वा ४ ससित्थेण वा ५ असित्येण वाई | वोसिरह। एत्थवि अन्नत्थपयं अणुवत्तइ पंचमीइ अत्यम्मि । तइया तहा विभत्ती तो लेवाडाओ अन्नत्थ ॥ १५२।। खज्जूरपाणपमुहं पिच्छिलभावेण भायणाईणं । उवलेवकारणत्ता कयलेवं तं विवज्जेत्ता ॥ १५३ ॥ वोसिडू तिहाहारं संबंधो एवमेत्थ कायब्वो। वासद्दी अविसेसं अलेवडेणं भणइ तस्स ॥ १५४ ॥ उववासमाइयाणं जह | चेव अलेवकारिपाणेणं। तह लेबकारिणाविहन होइ भंगोत्ति भावत्यो ।। १५५॥ एवमलेवाडाओ अपिच्छलाओ तहेव अच्छाओ। निम्मलउसिणोदयमाइयाओ जइपाणजोगाओ ।। १५६ ॥ बहलाओ गड्डुलाओ तिलतंडुलधोवणाइरू सम ॥१३॥ वाओ। सस्सित्थपाणगाओ आयामप्पमुहनीराओ ।। १५७ ॥ तह चेव असित्थाओ पाणाहाराउ सित्थवज्जाओ। बीमामाजी का अमान%% For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120