Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology
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________________ 16 प्राकृत पाठ-चयनिका 8. तणरुक्खं न छिंदेज्जा, फलं मूलं च कस्सई / आमगं विविहं बीयं, मणसा वि न पत्थए // 8 // 9. तसे पाणे न हिंसेज्जा, वाया अदुव कम्मुणा / उवरओ सव्वभूएसु, पासेज्ज विविहं जगं / / 9 / / 10. अट्ठ सुहुमाइं पेहाए, जाई जाणित्तु संजए / दयाहिगारी भूएसु, आस चिट्ठ सएहि वा // 10 // 11. कयराइं अट्ठ सुहुमाई, जाई पुच्छेज्ज संजए / इमाई ताई मेहावी, आइक्खेज्ज वियक्खणो // 11 // 12. सिणेहं पुष्फसुहुमं च, पाणुत्तिंगं तहेव य / पणगं बीयहरियं च, अंडसुहुमं च अट्ठमं // 12 // धवं च पडिलेहेज्जा, जोगसा पायकंबलं / सेज्जमुच्चारभूमिं च, संथारं अदुवासणं // 13 // 14. उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाण-जल्लियं / फासुयं पडिलेहित्ता, परिट्ठावेज्ज संजए // 14 // 15. पविसित्तु परागारं, पाणट्ठा भोयणस्स वा / जयं चिट्टे मियं भासे ण य रूवेसु मणं करे // 15 // 16. बहु सुणेइ कण्णेहिं, बहुं अच्छीहिं पेच्छइ / न य दिलृ सुयं सव्वं, भिक्खू अक्खाउमरिहइ // 16 // 17. न य भोयणमि गिद्धो, चरे उछ अयंपिरो / अफासुयं न भुंजेज्जा, कीयमुद्देसियाहडं // 17 // 18. सन्निहिं च न कुवेज्जा, अणुमायं पि संजए / मुहाजीवी असंबद्धे, हवेज्ज जगनिस्सिए // 18 // 19. लूहवित्ती सुसंतुढे, अप्पिच्छे सुहरे सिया / आसुरत्तं न गच्छेज्जा, सोच्चाणं जिणसासणं // 19 // 20. अत्थंगयम्मि आइच्चे पुरत्था य अणुग्गए / आहारमइयं सव्वं, मणसा वि न पत्थए / // 20 //
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