Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 112
________________ 110 प्राकृत पाठ-चयनिका त्वां प्राप्य सा रतिरिवारिजने प्रनष्टा // 49 / / शकारः-अगेण्हिअ वशन्तशेणिअंण गमिश्शम्। (अगृहीत्वा वसन्तसेनां न गमिष्यामि।) विट:-एतदपि न श्रुतं त्वया। आलाने गृह्यते हस्ती वाजी वल्गासु गृह्यते। हृदये गृह्यते नारी यदिदं नास्ति गम्यताम् // 50 // शकारः-यदि गच्छशि, गच्छ तुमम्। हगे ण गमिश्शम्। (यदि गच्छसि, गच्छ त्वम्। अहं न गमिष्यामि।) विट:-एवम्। गच्छामि। (इति निष्क्रान्तः।) शकारः-गडे क्खु भावे अभावम्। (विदूषकमुद्दिश्य।) अले काकपदशीश-मश्तका दुट्टबडुका, उवविश उवविश। (गतः खलु भावोऽभावम्। अरे काकपदशीर्ष-मस्तक दुष्टबटुक, उपविशोपविश।) विदूषकः-उववेसिदा ज्जेव अम्हे। (उपवेशिता एव वयम्।) शकारः-केण। (केन) विदूषकः-कअन्तेण (कृतान्तेन।) शकारः-उद्वेहि उडेहि। (उत्तिष्ठोत्तिष्ठ।) विदूषकः-उट्ठिस्सामो / (उत्थास्यामः।) शकारः-कदा। (कदा।) विदूषकः-जदा पुणो वि देव्वं अणुऊलं भविस्सदि। (यदा पुनरपि दैवमनुकूलं भविष्यति।) शकारः-अले, लोद लोद। (अरे, रुदिहि रुदिहि।) विदूषकः-रोदाविदा ज्जेव अम्हे। (रोदिता एव वयम्।। शकारः-केण। (केन।) विदूषकः-दुग्गदीए। (दुर्गत्या।) शकारः-अले, हश हश। (अरे, हस हस।) विदूषकः-हसिस्सामो। (हसिष्यामः।) शकारः-कदा। (कदा।)

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