Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 115
________________ मृच्छकटिकम् 113 (रदनिकामुपसृत्य।) विदूषकः-भो, इअंसा रदणिआ। (भोः, इयं सा रदनिका।) चारुदत्तः-इयं सा रदनिका। इयमपरा का। अविज्ञातावसक्तेन दूषिता मम वाससा। वसन्तसेनाः-(स्वगतम्।) णं भूसिदा। (ननु भूषिता।) चारुदत्तः-छादिता शरदभ्रेण चन्द्रलेखेव दृश्यते // 54 // अथवा, न युक्तं परकलत्रदर्शनम्।। विदूषकः-भो, अलं परकलत्रदंसणसङ्काए। एसा वसन्तसेणा कामदेवाअदनुज्जाणादो पहुदि भवन्तमणुरत्ता। (भोः, अलं परकलत्रदर्शनशङ्कया। एषा वसन्तसेना कामदेवायतनोद्यानात्प्रभृति त्वामनुरक्ता।)

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