Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 119
________________ रत्नावली महाराष्ट्री प्राकृत 1. कुसुमाउह-पिय-दूअओ मउलाइअ-बहु-चूअओ। सिढिलिअ-माण-ग्गहणओ वाअइ दाहिण-पवणओ। विरह-विवड्डिअ-सोअओ कंखिअ-पिअ-अण-मेलओ पडिवालणासमत्थओ तम्मइ जुवई-सत्थओ / इह पढमं महुमासो जणस्स हिअआई कुणइ मउआइ / * पच्छा विज्झइ महुमासो जणस्स हिअआइं कुणइ मउआई। पच्छा विज्झइ कामो लद्ध-प्पसेरहिं कुसुम-बाणेहिं / 2. पणमह चलणे इन्दस्स इन्दआलम्मि लद्धणामस्स, तह अज्ज-सम्बरस्स वि माआ-सुपडिट्ठिअ-जसस्स / किं धरणीए मिअङ्को आआसे महिहरो जले जलणो, मज्झण्हम्मि पओसो, दाविज्जउ देहि आणत्तिं // 3. किं जप्पिएण बहुणा जं जं हिअएण महसि संदर्यु / तं तं दंसेमि अहं गुरुणो मन्त-प्पहावेण। 4. हरि-हर-बम्ह-प्पमुहे देवे दंसेमि देवराअंच गअणम्मि सिद्ध-विज्जाहर-वहु-सत्थं च णच्चन्तं / Shriharsa: Ratnavali (Act 1 and IV)

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