Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology
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________________ 765 प्राकृत पाठ-चयनिका अहिणव-सिरीस-सामा आयंबिर-पाडलच्छि-जुयलिल्ला। दीहुण्ह-पवण-णीसास-णीसहा गिम्ह-लच्छी वि।। उण्णय-गरुय-पओहर-मणोहरा सिहि-फुरंत-धम्मिल्ला। उब्भिण्ण-णवंकुर-पुलय-परिगया पाउस-सिरी वि।। 12. वियसिय-तामरस-मुही कुवलय-कलिया विलास-दिट्ठिल्ला। कोमल-मुणाल-वेल्लहल-बाहिया सरय-लच्छी वि।। हेमंत-सिरी विस-रोद्ध-तिलय-लीणालि-सललियालइया मल्लिय-परिमल-सुहया णिरंतरुब्भिण्ण-रोमंचा। अणवरय-भमिर-महुयरि-पियंगु-मंजरि-कयावयंसिल्ला। विप्फुरिय-कुंद-दसणा सिसिर-सिरी सायरं भणइ।। दे सुहय कुण पसायं पसीय एसेस अंजली तुज्झ। णव-णीलुप्पल-सरिसाएँ देव दिट्ठीएँ विणिएसु॥ इय जो संगमयामर-कय-उउ-सिरि-राय-रहस-भणिओ वि। झाणाहि णेय चलिओ तं वीरं णमह भत्तीए॥ अहवा। जाइ-जरा-मरणावत्त-खुत्त-सत्ताण जे दुहत्ताणं। भव-जलहि-तारण-सहे सव्वे च्चिय जिणवरे णमह॥ सव्वहा, 18. बुझंति जत्थ जीवा सिज्झंति य के वि कम्म-मल-मुक्का। जं च णमियं जिणेहि वि तं तित्थं णमह भावेण।। 2. इह कोह-लोह-माण-माया-मय-मोह-महाणुत्थल्ल-मल्ल-णोल्लणावडण-चमढणा -मूढ-हिययस्स जंतुणो तहा-संकिलिट्ठ-परिणामायास-सेय-सलिल-संसग्ग-लग्ग-कम्म -पोग्गलुग्ग-जाय-घण-कसिण-कलंक-पंकाणुलेवणा-गरुय-भावस्स गुरु-लोह-पिंडस्स व जलम्मि झत्ति णरए चेव पडणं। तत्थ वि अणेय-कस-च्छेय-ताव-ताडणाहोडण-घडणविहडणाहिं अवगय-बहु-कम्म-किट्टस्स जच्च-सुवण्णस्स व अणटू-जीव-भावस्स किंचि-मेत्त-कम्म-मलस्स तिरिय-लोए समागमणं। तत्थ वि कोइल-काय-कोल्हुयाकमल-केसरी-कोसिएसु वग्घ-वसह-वाणर-विच्चुएसु गय-गवय-गंडय-गावी-गोणगोहिया-मयर-मच्छ-कच्छभ-णक्क-चक्क-तरच्छ-च्छभल्ल-भल्लुंकि-मय-महिस -मूसएसुं सस-सुणउ-संबर-सिवा-सुय-सारिया-सलभ-सउणेसु, तहा पुहइ-जलजलणाणिल-गोच्छ-गुम्म-वल्ली-लया-वणस्सइ-तसाणेय-भव-भेय-संकुलं भव-संसार-सागरमाहिंडिऊण तहाविह-कम्माणुपुव्वी-समायडिओ कह-कह वि मणुय
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