Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology
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________________ कुवलयमालाकहा81 कत्थइ गाहा-रइया कत्थइ दुवईहिँ गीइया-सहिया। दुवलय-चक्कलएहिं तियलय तह भिण्णएहिं च।। कत्थइ दंडय-रइया कत्थइ णाराय-तोडय-णिबद्धा। कत्थइ वित्तेहि पुणो कत्थई रइया तरंगेहिं।। कत्थइ उल्लावेहिं अवरोप्पर-हासिरेहिँ वयणेहि। माला-वयणेहिँ पुणो रइया विविहेहिँ अण्णेहि। पाइय-भासा-रइया मरहट्ठय-देसि-वण्णय-णिबद्धा। सुद्धा सयल-कह च्चिय तावस-जिण-सत्थ-वाहिल्ला।। कोऊहलेण कत्थइ पर-वयण-वसेण सक्कय-णिबद्धा। किंचि अवब्भंस-कया दाविय-पेसाय-भासिल्ला॥ सव्व-कहा-गुण-जुत्ता सिंगार-मणोहरा सुरइयंगी। सव्व-कलागम-सुहया संकिण्ण-कह त्ति णायव्वा।। एयाणं पुण मज्झे एस च्चिय होइ एत्थ रमणिज्जा। सव्व-भणिईण सारो जेण इमा तेण तं भणिमो।। 8. पुणो सा वि तिविहा। तं जहा। धम्म-कहा, अत्थ-कहा, काम-कहा। पुणो सव्व लक्खणा संपाइय-तिवग्गा संकिण्ण त्ति। ता एसा धम्म-कहा वि होऊण कामत्थ-संभवे संकिण्णत्तणं पत्ता। ता पसियह मह सुयणा खण-मेत्तं देह ताव कण्णं तु। अब्भत्थिया य सुयणा अवि जीयं देंति सुयणाण।। अण्णं च। सालंकरा सुहया ललिय-पया मउय-मंजु-संलावा। सहियाण देइ हरिसं उब्बूढा णव-वहू चेव।। सुकइ-कहा-हय-हिययाण तुम्ह जइ वि हु ण लग्गए एसा। पोढा-रयाओ तह वि हु कुणइ विसेसं णव-वह व्व।। अण्णं च।
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