Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology
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________________ कुवलयमालाकहा79 सुपुरिस-गुण-कित्तणेण सहलीकयं जम्मं ति। अवि य। जा सुपुरिस-गुण-वित्थार-मइलणा-मेत्त-वावडा होमो। ता ताव वरं जिणयंद-समण-चरियं कयं हियए। इमं च विचिंतिऊण तुब्भे विणिसामेह साहिज्जमाणं किंचि कहावत्थु ति। अवि य। मा दोसे च्चिय गेण्हह विरले वि गुणे पयासह जणस्स। अक्ख-पउरो वि उयही भण्णइ रयणायरो लोए।। 6. तओ कहा-बंधं विचिंतेमि त्ति। तत्थ वि पालित्तय-सालाहण-छप्पण्णय-सीह-णाय-सद्देहि। संखुद्ध-मुद्ध-सारंगओ व्व कह ता पयं देमि।। णिम्मल-मणेण गुण-गरुयएण परमत्थ-रयण-सारेण। पालित्तएण हालो हारेण व सहइ गोट्ठीसु।। चक्काय-जुवल-सुहया रम्मत्तण-राय-हंस-कय-हरिसा। जस्स कुल-पव्वयस्स व वियरइ गंगा तरंगवई।। भणिइ-विलासवइत्तण-चोल्लिक्के जो करेड हलिए वि। कब्वेण किं पउत्थे हाले हाला-वियारे व्व।। पणईहि कइयणेण य भमरेहि व जस्स जाय-पणएहिं। कमलायरो व्व कोसो विलुप्पमाणो वि हुण झीणो। सयल-कलागम-णिलया सिक्खाविय-कइयणस्स मुहयंदा। कमलासणो गुणड्डो सरस्सई जस्स वड्डकहा। जे भारह-रामायण-दलिय-महागिरि-सुगम्म-कय-मग्गे। लंघेइ दिसा-करिणो कइणो को वास-वम्मीए।। छप्पण्णयाण किंवा भण्णउ कइ-कुंजराण भुवणम्मि। अण्णो वि छेय-भणिओ अज्ज वि उवमिज्जए जेहिं। लायण्ण-वयण-सुहया सुवण्ण-रयणुज्जला य बाणस्स। चंदावीडस्स वणे जाया कायंबरी जस्स।
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