Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 103
________________ 101 मृच्छकटिकम् पलाशि शिग्धं तुलिदं शवेग्गं शवेण्टणं मे हलअं हलन्ती // 28 // (अस्माभिश्वण्डमभिसार्यमाणा वने शृगालीव कुक्करैः। पलायसे शीघ्रं त्वरितं सवेगं सवृन्तं मम हृदयं हरन्ती।।) वसन्तसेना-पल्लवआ पल्लवआ, परहुदिए परहुदिए। (पल्लवक पल्लवक, परभृतिके परभृतिके।) शकार:-(सभयम्।) भावे भावे, मणुश्शे मणुश्शे। (भाव भाव, मनुष्या मनुष्याः।) विटः-न भेतव्यं न भेतव्यम्। वसन्तसेना-माहविए माहविए। (माधविके माधविके।) विट:-(सहासम्।) मूर्ख, परिजनोऽन्विष्यते। शकार:-भावे भावे, इत्थिआं अण्णेशदि। (भाव भाव, स्त्रियमन्वेषयति।) विट:-अथ किम्। शकारः-इत्थिआणं शदं मालेमि। शूले हगे (स्त्रीणां शतं मारयामि। शूरोऽहम्।) वसन्तसेना-(शून्यमवलोक्य।) हद्धी हद्धी, कधं परिअणो वि परिब्भट्टो एत्थ मए अप्पा शअं ज्जेव रक्खिदव्वो। [हा धिक् हा धिक्। कथं परिजनोऽपि परिभ्रष्टः। अत्र मयात्मा स्वयमेव रक्षितव्यः।] विट:-अन्विष्यतामन्विष्यताम्। शकार:-वशन्तशेणिए, विलव विलव परहुदिअंवा पल्लवअंवा शव्वं एव्व वशन्तमाशम् मए अहिशालिअन्तीं तुमं को पलित्ताइश्शदि। किं भीमशेणे जमदग्गिपुत्ते कुन्तीशुदे वा दशकन्धले वा। एशे हगे गेण्हिय केशहत्थे दुश्शाशणश्शाणुकिदिं कलेमि // 29 // णं पेक्ख णं पेक्ख। अशी शुतिक्खे वलिदे अ मत्थके कप्पेम शीशं उद मालएम वा। अलं तवेदेण पलाइदेण मुमुक्खु जे होदि ण शे क्ख जीअदि // 30 // वसन्तसेनिके, विलप विलप परभतिकां वा पल्लवकं वा सर्व वा वसन्तमासम्। मयाभिसार्यमाणां त्वां कः परित्रास्यते।

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