Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 102
________________ 100 प्राकृत पाठ-चयनिका णिण्णाशा कुलणाशिका अवशिका कामस्स मज्जूशिका। एशा वेशवहू शुवेशणिलआ वेशङ्गणा वेशिआ एशे शे दश णामके मइ कले अज्जावि मं णेच्छदि // 23 // [भाव भाव] एषा नाणकमोषिकामकशिका मत्स्याशिका लासिका निर्नासा कुलनाशिका अवशिका कामस्य मञ्जूषिका। एषा वेशवधूः सुवेशनिलया वेशाङ्गना वेशिका एतान्यस्या दश नामिकानि मया कृतान्यद्यापि मां नेच्छति॥ विटःप्रसरसि भयविक्लवा किमर्थं प्रचलितकुण्डलघृष्टगण्डपार्धा। विटजननखघट्टितेव वीणा जलधरगर्जितभीतसारसीव / / 24 / / शकारःझाणज्झणन्तबहुभूषणशद्दमिश्शं किं दोवदी विअ पलाअशि लामभीदा। एशे हलामि शहशत्ति जधा हणूमे विश्शावशुश्श ब्रहिणिं विअ तं शुभद्दम् / / 25 / / चेट:लामेहि अलाअवल्लहं तो क्खाहिशि मच्छमंशकम्। एदेहिं मच्छमंशकेहिं शुणआ मलअंण शेवन्ति // 26 // (रमय च राजवल्लभं ततः खादिष्यसि मत्स्यमांसकम्। एताभ्यां मत्स्यमांसाभ्यां श्वानो मृतकं न सेवन्ते।) विट:-भवति वसन्तसेने, किं त्वं कटीतटनिवेशितमुद्वहन्ती ताराविचित्ररुचिरं रशनाकलापम्॥ वक्रेण निर्मथितचूर्णमनः शिलेन त्रस्ताद्भुतं नगरदैवतवत्प्रयासि // 27 // शकार: अम्हेहि चण्डं अहिशालिअन्ती वणे शिआली विअ कुक्कुलेहिं।

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