Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 100
________________ मृच्छकटिकम् वसन्तसेनामुद्दिश्य शकारस्योक्तिः (ततः प्रविशति विटशकारचेटैरनुगम्यमाना वसन्तसेना।) विटः-वसन्तसेने, तिष्ठ तिष्ठ। किं त्वं भयेन परिवर्तितसौकुमार्या नृत्यप्रयोगविशदौ चरणौ क्षिपन्ती। उद्विग्नचञ्चलकटाक्षविसृष्टदृष्टि फ्धानुसारचकिता हरिणीव यासि // 17 // शकारः-च्यिष्ठ वशन्तशेणिए, च्यिष्ठ। किं याशि धावशि पलाअशि पक्खलन्ती वाशू पशीद ण मलिस्सशि चिट्ठ दाव। कामेण दज्झदि हु मे हडके तवश्शी अङ्गाललाशिपडिदे विअ मंशखण्डे // 18 // [तिष्ठ वसन्तसेनिके] तिष्ठ। किं यासि धावसि पलायसे प्रस्खलन्ती वासु प्रसीद न मरिष्यसि तिष्ठ तावत्। कामेन दह्यते खलु मे हृदयं तपस्वि अङ्गारराशिपतितमिव मांसखण्डम्॥]

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