Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 84
________________ 82 प्राकृत पाठ-चयनिका णज्जइ धम्माधम्मं कज्जाकज्जं हियं अणहियं च। सुब्वइ सुपुरिस-चरियं तेण इमा जुज्जए सोउ।। 9. सा उण धम्मकहाणाणा-विह-जीव-परिणाम-भाव-विभावणत्थं सव्वोवाय-णिउणेहिं जिणवरिंदेहिं चउव्विहा भणिया। तं जहा। अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेग-जणणी, णिव्वेय-जणणि त्ति। तत्थ अक्खेवणी मणोणुकूला, विक्खेवणी मणो-पडिकूला, संवेग-जणणी णाणप्पत्ति-कारणं, णिव्वेय-जणणी उण वेरग्गुप्पत्ती। भणियं च गुरुणा सुहम्म-सामिणा। अक्खेवणि अक्खित्ता पुरिसा विक्खेवणीएँ विक्खिता। संवेयणि संविग्गा णिव्विण्णा तह चउत्थीए।। जहा तेण केवलिणा अरण्णं पविसिऊण पंच-चोर-सयाइं रास-णच्चण-च्छलेण महा-मोह-गह-गहियाइं अक्खिविऊण इमाए चच्चरीए संबोहियाइं। अवि य। संबुज्झह किं ण बुज्झइ एत्तिए वि मा किंचि मुज्झह। कीरउ जंकरियव्वयं पुण ढुक्कइ तं मरियव्वयं।। इति धुवयं। कसिण-कमल-दल-लोएण-चल-रेहंतओ। पीण-पिहुल-थण-कडियल-भार-किलंतओ। ताल-चलिर-वलयावलि-कलयल-सद्दओ। रासयम्मि जइ लब्भइ जुवई-सत्थओ।। संबुज्झह किं ण बुज्झह। पुणो धुवयं ति। तओ अक्खित्ता। असुइ-मुत्त-मल-रुहिर-पवाह-विरूवयं। वंत-पित्त-दुग्गंधि-सहाव-विलीणयं। मेय-मज्ज-वस-फोप्फस-हड-करंकयं। चम्म-मेत्त-पच्छायण-जुवई-सत्थय।। संबुज्झह किं ण बुज्झह। तओ विक्खित्ता। कमल-चंद-णीलुप्पल-कंति-समाणयं। मूढएहि उवमिज्जइ जुवई-अंगयं। थोवयं पि भण कत्थइ जइ रमणिज्जयं। असुइयं तु सव्वं चिय इय पच्चक्खयं॥ संबुज्झइ किं ण बुज्झइ। तओ संविग्गा। जाणिऊण एयं चिय एत्थ असारए। असुइ-मेत्त-रमणूसव-कय-वावारए। कामयम्मि मा लग्गह भव-सय-कारए। विरम विरम मा हिंडह भव-संसारए।

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