Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 89
________________ कुवलयमालाकहा 87 14. तस्स देवस्स मज्झ-भाए दूसह-खय-काल-भय-पुंजियं पुण्णुप्पत्ति- सूसमेक्क-बीयं पिव, बहु-जण-संवाह-मिलिय हला-हलारावुप्पाय-खुहिय-समुद्द-सद्द-गंभीर-सुव्वमाण-पडिरवं, तुंग-भवण-मणितोरणाबद्ध-धवल-धयवद्धव्वमाण-संखद्ध-मुद्ध-रवि-तुरय-परिहरिज्जत-भुवण-भागं, णाणा-मणि-विणिम्मविय-भवण-भित्ति-करंबिज्जंत-किरणाबद्ध-सुर-चाव-रम्म-णहयलं, महा-कसिण-मणि-घडिय-भवण-सिहर-प्पहा-पडिबद्ध-जलहर-वंद्रं, णिद्दय-करयल- ताडि य-मुरव-रविज्जंत-गीय-गज्जिय-णिणायं, तविय-तवणिज्ज-पुंजुज्जल-ललिय-विलासियणसंचरंत-विज्जु-लयं तार-मुत्ताहलुद्ध-पसरंत-किरण-वारि-धारा-णियरं णव-पाउस-समयं पिव सव्व-जण-मणहरं सुव्वए णयरं। जं च महापुरिस-रायाभिसेय-समय-समागमवासवाभिसेय- समणंतर-संपत्त-णलिणि-पत्त-णिक्खित्त-वारि-वावड-कर-पुरिस-मिहुणपल्हत्थिय-चलण-जुयलाभिसेय-दंसण-सहरिस-हरि-भणिय-साहु-विणीय-पुरिसविणयंकिया विणीया णाम णयरि त्ति। 15. सा पुण कइसिय। समुदं पिव गंभीरा महा-रयण-भरिया य, सुर-गिरी विय थिरा कंचणमया य, भुवणं पिव सासया बहु-वुत्तंता य, सग्गं पिव रम्मा सुर-भवणणिरंतरा य, पुहई विय वित्थिण्णा बहु-जण-सय-संकुला य, पायालं पिव सुगुत्ता रयण-पदीवुज्जोइया य त्ति। अवि य। चंद-मणि-भवण-किरणुच्छलत्त-विमल-जल-भएण। घडियो जीए विहिणा पायारो सेउबंधो व्व।। जत्थ य विवणि-मग्गेसु वीहीओ वियड्ड-कामुय-लीलाओ व्विय कुंकुम-कप्पूरागरुमयणाभिवास-पडवास-विच्छडाओ। काओ वि पुण वेला-वण-राईओ इव एला-लवंगकक्कोलय-रासि- गब्भिणाओ। अण्णा पुण इब्भ-कुमारिया इव मुत्ताहल-सुवण्णरयणुज्जलाओ। अण्णा ,छइओ इव पर-पुरिस-दसणे विस्थारियायंब-कसण-धवल-दीहरणेत्त-जुयलाओ। अण्णा खलयण-गोट्ठि-मंडली इव बहु-विह-पर-वसण-भरियाओ। तहा अण्णाअहो उण खोर-मंडलिओ इव संणिहिय-विडाओ कच्छउड-णिक्खित्त-सरस-णहवयाओ य। अण्णा गाम-जुवईओ इव रीरिय-संख-वलय-काय-मणिय-सोहाओ कच्चूर-वयणणिम्महंत-परिमलाओ य। अण्णा रण-भूमीओ इव सर-सरासणब्भसं-चक्क-संकुलाओ मंडलग्ग-णिचियाओ य। अण्णा मत्त-मायंग-घडाउ इव पलं बंत-संख-चामर घंटा-सोहाओ-ससेंदूराओ य। अण्णा मलय- वण-राईओ इव संणिहिय-विविह-ओसहीओ

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