Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 91
________________ कुवलयमालाकहा 89 णाणा-विण्णाणे व, उच्छाहो धणे रणे व, पीई दाणे माणे व, अब्भासो धम्मे धम्मे व त्ति। जत्थ य दो-मुहउ णवर मुइंगो वि। खलो तिल-वियारो वि। सूयओ केयइ-कुसुमुग्गमो वि। फरुसो पत्थरो वि। तिक्खओ मंडलग्गो वि। अंतो-मलिणो चंदो वि। भमणसीलो महुयरो वि। पवसइ हंसो वि। चित्तलओ बरहिणओ वि। जलु कीलालो वि। अयाणओ बालओ वि। चंचलो वाणरो वि। परोवयावी जलणो वित्ति। जत्थ य पर-लोय-तत्ती-रय णवर दीसंति साहु-भडरय। कर-भग्गइं णवर दीसंति वर-करिहिं महहमइं। दंडवायाइं णवरि दीसंति छत्ताण य णच्चणहं। माया-वंचणाई णवरि दीसंति इंदियालिय-जणहं॥ विसंवयंति णवर सुविणय-जंपियइं। खंडियइं णवरि दीसंति कामिणियणहो अहरई। दढ-बद्धई णवरि दीसंति कणय-संगहेहिं महारयणइं। वलामोडिय घेप्पंति णवर पणय-क लह-कय-कारिम-कोव-कुविय-कंत-कामिणियणहो अहरइं वियड्ड-कामुएहिं ति। अहवा। कह वणिज्जइ जा किर तियसेहिं सक्क-वयणेण। पढम-जिण-णिवासत्थं णिम्मविया सा अउज्झ त्ति। 18. तम्मि य राया ... दरियारि-वारण-घडा-कुंभ-स्थल-पहर-दलिय-मुत्ताहलो। मुत्ताहल-णिवह- दलंत-कंत-रय-धूलि-धवल-करवालो। करवाल-सिहा-णिज्जिय-महंत-सामंत-णिवह-णय-चलणो। चलण-जुयल- मणि-विणव्विय-कंत-महा-मउड-घडिय-सुपीढो॥ त्ति। ___णवरं पुण संसि-वंस-संभवो वि होऊण सयं चेय सो चोरो मुद्धड-लडह-विलासिणिहियय-हरणेहिं, सयं चेय पर कलत्त रओ दरिय-रिवु-सिरी-बलामोडिय समाकड्डणेहि, सयं चेय सो वाडो पडिवक्ख-णरिंद-वंद्र-वाडणेहिं ति। जो य दोग्गच्च-सीय-संतावियाण दहणो, ण उण दहणो। णियय-पणइणि-वयण-कमयायराणं मयलंछणो, ण उण मय-लंछणो। विणिज्जयासेस-पुरिस-रूवेणं अणंगो, ण उण अणंगो। दरियारि-महिहर-महावाहिणीणं जलही, ण उण जलही। सुयण-वयण-कमलायराणं तवणो, ण उण तवणो त्ति। जो य घण समओ बंधुयण-कयंबयाणं, सरयागमो पणइयण-कुमुय-गहणाणं, हेमंतो पडि-वक्ख-कामिणी -कमलिणीणं, सिसिर-समओ णिय-कामिणी-कुंद-लइयाणं, सुरहि-मासो मित्तयण-काण

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