Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 79
________________ कुवलयमालाकहा 77 त्तणं पावइ जीवो त्ति। अवि य। 3. बहु-जम्म-सहस्स-णीरए बहु-वाहि-सहस्स-मयरए। बहु-दुक्ख-सहस्स-मीणए बहु-सोय-सहस्स-णक्कए।। एरिसए संसार' जलहि-समे हिंडिऊण पावऍहिं। पावइ माणुस-जम्मय जीवो कह-कह वि पुव्व-पुण्णऍहिं॥ तत्थ वि सय-जवण-बब्बर-चिलाय-खस-पार-भिल्ल-मुरंडो-बोक्कस-सबरपुलिंद-सिंघलाइसु परिभमंतस्स दुल्लहं चिय सुकुल-जम्मं ति। तत्थ वि काण-कुंट-मुंटअंध-बहिर-कल्ल-लल्लायंगमो होइ। तओ एवं दुल्लह-संपत्त-पुरिसत्तणेण पुरिसेण पुरिसत्थेसु आयरो कायव्वो त्ति। अवि य।। रुद्दम्मि भव-समुद्दे तुलग्ग-लद्धम्मि कह वि मणुयत्ते। पुरिसा पुरिसत्थेसुं णिउणं अह आयरं कुणह॥ 4. सो पुण तिविहो / तं जहा। धम्मो अत्थो कामो, केसि पि मोक्खो वि। एएहिं विरहियस्स उण पुरिसस्स महल्ल-दंसणाभिरामस्स उच्छु-कुसुमस्स व णिप्फलं चेय जम्मं ति। अवि य। धम्मत्थ-काम-मोक्खाण जस्स एक्कं पि णत्थि भुयणम्मि। किं तेण जीविएणं कीडेण व दव-पुरिसेणं। एए च्चिय जस्स पुणो कह वि पहुप्पंति सुकय-जम्मस्स। सो च्चिय जीवइ पुरिसो पर-कज्ज-पसाहण-समत्थो।। इमाणं पि अहम-उत्तिम-मज्झिमे णियच्छेसु। तत्थत्थो कस्स वि अणत्थो चेव केवलो, जल-जलण-णरिंद-चोराईणं साहारणो। ताण चुक्को वि धरणि-तल-णिहिओ चेव खयं पावइ। खल-किविण-जणस्स दुस्सील-मेच्छ-हिंसयाणं च दिण्णो पावाणु-बंधओ होइ। कह वि सुपत्त-परिगहाओ धम्म-कलं पावइ काम-कलं च। तेण अत्थो णाम पुरिसस्स मज्झिमो पुरिसत्थो। कामो पुण अणत्थो चेव केवलं। जं पि एयं पक्खवाय-गब्भ-णिब्भर-मूढ-हियएहिं भणियं कामसत्थयारेहिं जहा 'धम्मत्थ-कामे पडिपुण्णे संसारो जायइ' त्ति, तेसिं तं पि 'परिकप्पणा-मेत्तं चिय। जेण एयंत-धम्म-विरुद्धो अत्थ-क्खय-कारओ य कामो, तेण दुग्गय-रंडेकल्ल-पुत्तओ विव अट्ठट्ठ-कंठयाभरण-वलय-सिंगार-भाव-रस-रसिओ ण तस्स धम्मो ण अत्थो ण कामो ण जसो ण मोक्खो त्ति। ता अलं इमिणा सव्वाहमेण

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