Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 69
________________ मध्य एशिया के अभिलेख 67 10. ति रज-दरो कित्सैत्स पितेय काल-करंत्स (1*) स च सक्क्षि अप्सुअन अप्षिय-शांचख,(*) स च 11. सक्क्षि भियो अंञ सक्क्षि-तोघ-कुवय सक्क्षि वसु-चढिय सक्क्षि 12. अप्सु-करंस सक्क्षि चोझ्बो-लुस्तु सक्क्षि वुर्यग-प्ति सक्क्षि सघि [नव कपोत सक्क्षि 13. कोरि-ष्वल्य यस वटयग शिरास सक्क्षि (1*) को पश्चिम-कलंमि वेतेयति चोतेयति 14. सजेयति तह रयद्वरंमि मो चोदंति अप्रमनं च सियति (*) एष प्रवंनग लिखि 15. दग़ महि दिविर-तमस्व-पुत्रेन दिविर-मोगतस तख्न, महत्वन अनतेन (1*) प्रमन व१६. र्ष-सहस्रमि (*) यवजिवो 17. सुत्र-छिनिदं कित्सैत्सस वटयग 18. श्रोङ्गः (स*) कर्सेनव-शोदि (ते?) ङ्गस च (1) संस्कृतच्छाया एतत् प्रपर्णकं (=पत्रम् = आज्ञापत्री) मोगत-निज-भूम्नः (= मोगत-भूम्नः) प्रत्यये (= सम्पर्के)। दिविर-रमुषोत्सस्य (= रमषोत्सेण) आज्ञप्तं धर्तव्यम्॥ संवत्सरे [नवमे] 9 महाराज-राजातिराजस्य महतः जयतः धार्मिकस्य सत्यधर्मस्थितस्य महानुभाव-महाराजांक्वग-देवपुत्रस्य क्षणे (= शासन-समये) मासे 6 दिवसे 14 / अस्ति मनुष्यः चर-पुरुषः (= गूढचारः) मोगतः नाम। सः उत्थाय (= स्वेच्छया) दिविर-रम्पोत्सस्य उपान्ते (रम्पोत्सं प्रति) आय भुम्नं (= उत्तम-भूमि) विक्रीतवान्) [अस्मिन् अडिनि-बीज-पर्याप्तिः (= अडिनिनामक-शस्यबीजानां वपनाय पर्याप्त-परिमाणं) मिलिम 1 खि० 10 गृहीतं मूल्यं तापवस्त्रकाणि हस्ताः 13 (= त्रयोदश-हस्त-परिमितानि) द्वादश (= द्वादश-संख्यकानि)। मूल्येन सम्यक् सम्यक् संरज्येते [क्रेतृ-विक्रेतारौ] तथा

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