Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology
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________________ 26 प्राकृत पाठ-चयनिका 8. सत्ता सव्वपयत्था सविस्सरूवा अणंतपज्जाया / भंगुष्पादधुवत्ता सप्पडिवक्खा हवदि एक्का // 8 // 9. दवियदि गच्छदि ताई ताइं सब्भावपज्जयाइं जं / दवियं तं भण्णंति हि अणण्णभूदं तु सत्तादो // 9 // 10. दव्वं सल्लक्खणयं उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्तं / गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू // 10 // उप्पत्ती व विणासो दव्वस्स य णत्थि अस्थि सब्भावो / विगमुप्पादधुवत्तं करेंति तस्सेव पज्जाया // 11 // 12. पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविजुत्ता य पज्जया णत्थि / दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूवेंति / / 12 / / 13. दव्वेण विणा ण गुणा गुणेहिं विणा दव्वं ण संभवदि / अव्वदिरित्तो भावो दव्वगुणाणं हवदि तम्हा // 13 // 14. सिय अत्थि णत्थि उहयं अव्वत्तव्वं पुणो वि तत्तिदयं / दव्वं खु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि // 14 // भावस्स णत्थि णासो णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो / गुणपज्जएसु भावा उप्पादवए पकुव्वंति // 15 // 16. भावा जीवादीया जीवगुणा चेदणा य उवओगो / सुरणरणारयतिरिया जीवस्स य पज्जया बहुगा // 16 // 17. मणुसत्तणेण णट्ठो देही देवो हवेदि इदरो वा / / उभयत्थ जीवभावो ण णस्सदि ण जायदे अण्णो // 17 // 18. सो चेव जादि मरणं जादि ण णट्ठो ण चेव उप्पण्णो / उप्पण्णो य विणट्ठो देवो मणुसो त्ति पज्जाओ // 18 // 19. एवं सदो विणासो असदो जीवस्स णत्थि उप्पादो / तावदिओ जीवाणं देवो मणुसोत्ति गदिणामो // 19 // 20. णाणावरणादीया भावा जीवेण सुठु अणुबद्धा / तेसिमभावं किच्चा अभूदपुव्वो हवदि सिद्धो / / 20 / /
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