Book Title: Prakrit Path Chayanika Ucchatar Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology
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________________ अशोक के गिरनार प्रस्तर अभिलेख | 35 दशम अभिलेख (धर्म-शुश्रूषा) 1. देवानं पियो प्रियदसि राजा यसो व कीति व न महाथावहा मञते अञत तदात्पनो दिघाय च मे जनो 2. धंमसुसुंसा सुस्रुसता धंमवुतं च अनुविधियतां [1] एतकाय देवानं पियो पियदसि राजा यसो व किति व इछति [2] 3. यं तु किचि परिकमते देवानं प्रियदसि राजा त सव पारत्रिकाय किंति सकले अपपरिस्रवे अस [3] एस तु परिसवे य अपुंजं [4] 4. दुकरं तु खो एतं छुदकेन व जनेन उसटेन व अञत्र अगेन पराक्रमेन सवं परिचजित्या [5] एत तु खो उसटेन दुकरं [6] संस्कृतच्छाया 1. देवानां प्रियः प्रियदर्शी राजा यशः वा कीर्ति वा न महार्थावहां मन्यते-अन्यत्र तदात्मनः दीर्घाय च मे जनः 2. धर्म-शुश्रूषा शुश्रूषतां धर्मोक्तं च अनुविधीयताम् एतस्मै देवानांप्रियः प्रियदर्शी राजा यशः वा कीर्ति वा इच्छति 3. यत् च किञ्चित् प्रक्रमते देवानां प्रियदर्शी राजा तत् सर्वं पारत्रिकाय किमिति? सकलः अल्पपरिस्रव स्यात्। एषः तु परिस्रवः यत् अपुण्यम्। 4. दुष्करं तु खलु एतत् क्षुद्रकेण वा जनेन उच्छ्रितेन (उत्कृष्टेन) वा अन्यत्र अग्रयात् पराक्रमात् सर्वं परित्यज्य। एतत् तु खलु उच्छ्रितेन दुष्करम्।
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