Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 33
________________ प्रदत्त धर्मोपदेश का प्रथम बार सुनना साधारण जनता पर अत्यधिक गहरा प्रभाव डाल गया। इस प्रकार इन दो धर्म-संस्थापकों का आश्रय पाकर प्रान्तीय बोलियाँ भी चमक उठी और संस्कृत से बराबरी का दावा करने लगीं। उधर वैदिक धर्मानुयायी और अधिक दृढ़ता से अपनी भाषा की रक्षा करने लगे। इसका फल यह हुआ कि संस्कृत एक वर्ग विशेष की भाषा मानी जाने लगी। जबकि मूलतः यह एक व्यापक भाषा है। कहा भी है - बालस्त्रीमन्दमूर्खाणां नृणां चारित्रकांक्षिणाम् । अनुग्रहार्थं तत्वज्ञैः सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः ॥ हरिभद्र, दशवै. वृत्ति, पृ. २०३ अर्थात् ' चारित्र के आकांक्षी बालक, स्त्री, मन्द, अज्ञजनों और मनुष्यों के हितार्थ अपने सिद्धान्तों का प्राकृत में उपदेश दिया है। स्पष्ट है कि जनबोली प्राकृत, संस्कृत की अपेक्षा बहुत सरल एवं बोधगम्य है, इसलिए जैन और बौद्धों ने इसे अपने उपदेशों का माध्यम बनाया। इन महापुरुषों की इस भाषायी क्रान्ति ने समाज के उस पिछड़े और उपेक्षित निम्न समझे जाने वाले व्यक्तियों के उन विभिन्न सभी वर्गों को भी आत्मकल्याण करके उच्च, श्रेष्ठ एवं संयमी जीवन जीने और समाज में सम्मानित स्थान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया, जो समाज में हजारों वर्षों से दलित एवं उपेक्षित समझे जाने के कारण सम्मानित जीवन जीने और अमृतत्व प्राप्त करने की सोच भी नहीं सकते थे। राष्ट्रीय समाज कल्याण की अन्त्योदय और सर्वोदय जैसी कल्याणकारी भावनाओं का सूत्रपात भी ऐसे ही चिन्तन से हुआ। पूर्वोक्त दोनों ही महापुरुषों ने अपने क्रान्तिकारी विचारों से सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक क्षेत्रों की विकृतियों को दूर करके धर्म के नाम पर बाह्य क्रियाकाण्डों, मिथ्याधारणाओं के स्थान पर प्रत्येक प्राणी के लिए जीवनोत्कर्ष और आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। भाषा और सिद्धान्तों की दृष्टि से उनकी इस परम्परा को उनके अनुयायियों ने आगे भी समृद्ध रखा। Jain Education International २० For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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