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व्यंजनों में सरलीकरण है। विभक्तियों का अदर्शन तथा परसर्गों का प्रयोग प्राकृत - अपभ्रंश के प्रभाव से हिन्दी में होने लग गया है।
पूर्वोक्त अध्ययन से यह भी स्पष्ट है कि प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं ने भारत की प्राचीन और अर्वाचीन प्रायः सभी भाषाओं को प्रभावित ही नहीं किया, अपितु हिन्दी सहित अनेक भाषाओं की जननी होने का भी इन्होंने गौरव प्राप्त किया है। अतः प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी सहित अनेक भाषाओं का गहन अन्तःसम्बन्ध स्वयं सिद्ध है। अपभ्रंश भाषा के उपलब्ध प्रमुख ग्रन्थ
क) चरित काव्य
१. महाकवि स्वयंभू (८वीं शती) कृत पउमचरिउ एवं रिट्ठणेमिचरिउ, २. अमरकीर्ति गणि कृत नेमिनाथ चरित, ३. शुभकीर्ति कृत शान्तिनाथ चरित, ४. यशः कीर्ति कृत चन्द्रप्रभु चरित, ५. महिन्दु कृत शान्तिनाथ पुराण, ६. देवदत्त कृत पार्श्वनाथ चरित, ७. धनपाल (वि. सं. १४५४) कृत बाहुबलि चरित, ८. लक्ष्मण कृत नेमिनाथ चरित, ९. श्रीधर (वि. स. १३वीं शताब्दी) कृत चन्द्रप्रभ चरित, पासणाह चरिउ, सुकुमाल चरिउ, १०. पद्मकीर्ति (वि. स. ११३४) पार्श्वनाथ चरित, ११. नरसेन (वि. सं. १५१२ से पूर्व) कृत वर्द्धमान कथा, १२. दामोदर कृत चन्द्रप्रभ चरित, १३. रइधू (वि. स. १५वीं - १६वीं शताब्दी) कृत मेहेसर ( मेघेश्वर) चरित, सम्मइ चरिउ, १४. धन्यकुमार चरित, सुकौशल चरित, जीवन्धर चरित, यशोधर चरित, सन्मतिनाथ चरित, १५. पुष्पदन्त (वि. सं. १०१६ - १०२२) कृत महापुराण, णायकुमार चरिउ, जसहर चरिउ, सम्मइ चरिउ |
१६. वीर कवि (वि. सं. १०७६) कृत जम्बूसामि चरिउ, १७. नयनन्दी (वि. सं. ११००) कृत सुदंसण चरिउ, १८. मुनि कनकामर (११वीं शती) कृत करकंडु चरिउ, १९. देवसेन ग़णि (वि. सं.
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