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३१.
२७. भारत की भाषायें : डॉ. राजमल बोरा, वाणी प्रका., नई दिल्ली; २८. मध्यकालीन सट्टकनाटक : संपा. डॉ. राजाराम जैन, प्रका. प्राच्य
श्रमण भारती, आरा, १९९२; ( मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन, प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी, प्रकाशक - पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी-१९८७; मूलाचार : भाषा वचनिका, सं. फूलचन्द प्रेमी एवं डॉ. मुन्नी जैन, प्रका. अनेकान्त विद्वत् परिषद्, १९९६;
राजस्थानी भाषा और साहित्य, डॉ. मोतीलाल, जयपुर; ३२. वज्जालग्गं - जयवल्लभकृत, अनु. डॉ. विश्वनाथ पाठक,
पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, १९८४; । शौरसेनी प्राकृत भाषा एवं साहित्य का इतिहास, डॉ. इन्दु जैन,
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, २०११; ३४. शौरसेनी प्राकृत साहित्य के प्रमुख आचार्य, प्रो. फूलचन्द जैन
प्रेमी, सं. सं: वि. वि., वाराणसी, (संकाय पत्रिका भाग-३); ३५. संस्कृत रूपक और प्राकृत, डॉ. महेश्वर प्रसाद सिंह, प्रकाशक . - आदित्य बुक सेन्टर, कमलानगर, दिल्ली, १९९७; ३६. . समणसुत्तं, प्रका. सर्व सेवा संघ, राजघाट, वाराणसी, १९८९; ३७. हिन्दी गद्य के विकास में जैन मनीषि पं. सदासुखदास का
योगदान, डॉ. मुन्नी जैन, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, २००२; ३८. हिन्दी साहित्य : उद्भव और विकास, डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी,
राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली;
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