Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 138
________________ एवं भगवन्तो महावीरो उवएसं कुणन्तो गामाणुगामं विहरन्तो सव्वपाणे मोक्खमग्गं णिदंसेंतो कत्तियमासस्स किण्हपक्खस्स अमावस्साए तिहीए बम्हमुहुत्ते पावाणयरीए णिव्वाणं पत्तो। तओ पहुइ इमो णिव्वाणदिवसो दीवावली उच्छव्वरूवेण पसिद्धो जाओ। उत्तं च हरिवंशपुराणम्मि (६६/१९) - ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रवृद्धया सुरासुरैः दीपितया प्रदीप्तया। तदास्मपावानगरी समन्ततः प्रदीपिताकाशतला प्रकाशते॥ जीए रयणीए समणो भगवं महावीरो णिव्वाणं पत्तो, तीए रयणीए नवमल्लई-नवलिच्छई कासी-कोसलाइ अट्ठारह गणरायाणो पाराभायं पोसहोववासं पट्ठविंसु। महावीरे णिव्वाणं पत्ते भावुज्जोओ गओ। अम्हे दव्बुज्जोयं करिस्सामो। (यह प्राकृत निबन्ध लेखक द्वारा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के श्रमण विद्या संकाय में आयोजित महावीर जयंती (१९८२) के अवसर पर प्रस्तुत किया गया।) १२५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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