Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 137
________________ जहा सूइ ससुत्ता ना विणस्सई। तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्सइ॥ जो सुत्तो ववहारे सो जोई जग्गए सकज्जम्मि। जो जग्गदि ववहारे सो सुत्तो अप्पणे कज्जे॥ मोक्खपाहुडं।। अप्पहियं कायव्वं जइ सक्कड़ परहिंय च कादव्वं। अप्पहियपरहियादो अप्पहिदं सुट्ट कादव्वं॥ - भगवती आराधना, पृ. ३५१ तओ णं समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाणदंसणधरे गोयमाईणं समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वयाइं सभावणाओ छज्जीवनिकायाई च आइक्खड़ भासइ परूवेइ। एगया गोयमेण गणहरेण महावीरो पुच्छिओ कधं चरे कधं चिढे कधमासे कधं सए। कधं भुंजेज्ज भासेज्ज कधं पावं ण बज्झई।।मूलाचार।। तित्थयरो महावीरो एवं वयासी - . जदं चरे जदं चिट्टे जदमासे जदं सए। जदं भुंजेज्ज भासेज्ज एवं पावं ण बज्झई। मूलाचार।। पढमो गणहरो गोयमो इंदभूई य तित्थयरस्स अरहंतस्स महावीरस्स उवएसे बारह-अंगेसु गुंफीअ (गंथीअ)। उत्तं च - अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं। सासणस्स हियट्ठाए, तओ सुत्तं पवत्तइ॥ - आवश्यक नियुक्ति ९३ बारहाणं अंगाणं णामाई इत्थं संति - आयारंगो, सूयगडंगो, ठाणंगो, समवायंगो, वियाणपण्णत्ति णायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाइं, विवागसुयं, दिद्विवाओ य। १२४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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