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उज्जम विणु होइ ण का वि सिद्धि धण्णकु० च० २.१३.१० - उद्यम के बिना कोई भी सिद्धि नहीं होती। मह मयवंतु अकज्जे णे जंपइ । वड्डमाण चरिउ ४.१०.४. बुद्धिमान व्यक्ति बिना प्रयोजन के नहीं बोलते। विहवहो फलु दुत्थिय आसासणु । सुदंसणचरिउ १.१०.३
- वैभव का फल दीन-दुखियों को आश्वासन यथायोग्य (सहायता) देना है।
सरणे पइट्ठ जीव रक्खिज्जइ । सुदंसणचरिउ ६.१८.११ - शरण में आये हुए जीव की रक्षा करनी चाहिये।
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