Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 152
________________ यद्यपि प्राकृत और अपभ्रंश भाषा और साहित्य के विकास हेतु सुझाक और उपाय बतलाये जा सकते हैं, किन्तु इसकी पहल हेतु आरम्भिक रूप में छह सुझाव इस प्रकार प्रस्तुत किये गये हैं अनेक - १. सरकार द्वारा मान्य भाषाओं की आठवीं अनुसूची में प्राकृत भाषा को सम्मिलित किया जाये प्राकृत भाषा प्राचीन काल में जनभाषा के रूप में एक समृद्ध राजभाषा रही है। वर्तमान में इसका विशाल साहित्य उपलब्ध है । किन्तु सरकार की ओर से इसके व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु अभी तक अत्यल्प ही प्रयास हुए हैं। अतः भारत सरकार द्वारा भाषाओं की मान्य आठवीं अनुसूची में प्राकृत भाषा को भी सम्मिलित किया जाये, ताकि इसकी चरणबद्ध रूप में निरन्तर प्रगति होती रहे। २. आदर्श प्राकृत महाविद्यालय एवं शोध संस्थान की स्थापना राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से सम्बद्ध अनेक आदर्श संस्कृत महाविद्यालय एवं कुछ आदर्श संस्कृत शोध संस्थान सम्पूर्ण देश में संचालित हो रहे हैं। अतः आरम्भिक चरण में कम से कम एक प्राकृत महाविद्यालय एवं एक प्राकृत शोध संस्थान को आदर्श योजना के अन्तर्गत गृहीत करके राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के अन्तर्गत स्थापित किया जाए। जयपुर, वाराणसी, मुम्बई, लखनऊ एवं भोपाल - इन शहरों में से किसी एक में इनकी स्थापना से प्राकृत भाषा के अध्ययन के इच्छुक विद्यार्थी एवं शोध छात्र सहज रूप में बहुतायत उपलब्ध हो सकते हैं। - ३. केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में प्राकृत विभाग की स्थापना केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित देश के किसी भी केन्द्रीय विश्व- विद्यालयों एवं अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में प्राकृत भाषा एवं साहित्य के अध्ययन हेतु स्वतन्त्र विभाग नहीं हैं। अतः आरम्भ में इनमें से कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों में स्वतन्त्र प्राकृत भाषा एवं साहित्य विभाग की स्थापना की जाये। Jain Education International - - ४. देश के सभी माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रमों में प्राकृत पाठ्यक्रम का निर्धारण - सी. बी. एस. ई. तथा देश के अन्य सभी माध्यमिक (१०+२) स्तर की परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में निर्धारित भाषाओं के स्थान १३९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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