Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 149
________________ पक्खीण सावयाण य विच्छोयं ण करेइ जो पुरिसो । जीवेसु य कुणइदयं तस्स अवच्चाइं जीवंति ॥ - - सुमतिसामि चरियं गा. ८१ - पक्षियों के बच्चों का जो व्यक्ति वियोग नहीं करता है और जीवों पर दया करता है उसकी सन्तति चिरंजीवी होती है। नेहं विणा विवाहो आजम्म कुणइ परिदाहं अर्थात् स्नेह के बिना विवाह जीवनभर दुखदायी होता है- नम्मयासुन्दरीकहा। गां. ३९१, पत्ते विणासकालो नासइ बुद्धिं नराण निक्खुत्तं अर्थात् विनाशकाले विपरीत बुद्धि - पउमचरियं ५३/१३८। घ) अपभ्रंश पउमचरिउ से तिह भुज्जु जिह ण मुच्चहि धणेण । पउमचरिउ १.७.१२.२ - - इस प्रकार भोग करो कि धन समाप्त न हो । तिह तजु पुणु वि ण होइ संगु । पउमचरिउ १.७.१२.३ - - इस प्रकार त्याग करो कि फिर से संग्रह न हो । सिद्धि णाणेण बिणु ण दिट्ठि । पउमचरिउ ४.६८.१०.९ ज्ञान के बिना सिद्धि नहीं दिख पड़ती। यि - जम्मभूमि जणणिऍ सहिय सग्गे वि होइ अइ - दुल्लहिय । अपनी जन्मभूमि और अपनी जननी माता, स्वर्ग से भी — - अधिक प्यारी होती है । - पउमचरिउ ५.७८.१७.४ तिह जीवहि जिह परिभमइ कित्ति । इस प्रकार जीओ जिससे कीर्ति फैले। - विणु जीवदया ण अत्थि धम्मु । महापुराण ८४.१.९ - जीव दया के बिना धर्म नहीं होता। Jain Education International १३६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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