Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 129
________________ निष्कर्ष इस तरह आधुनिक भारतीय भाषाओं की संरचना और शब्द तथा धातुरूपों पर भी प्राकृत का स्पष्ट प्रभाव है। यह उसकी सरलता और जन-भाषा होने का प्रमाण है। न केवल भारतीय भाषाओं के विकास में अपितु इन भाषाओं के साहित्य की विभिन्न विधाओं को भी प्राकृत-अपभ्रंश भाषाओं के साहित्य ने पुष्ट किया है। . किसी भी जन-भाषा के लिए इन प्रवृत्तियों से गुजरना स्वाभाविक है। किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु अनेक ऐसे कठिन एवं संस्कृतनिष्ठ शब्द गढ़ दिये गये, जिनसे हिन्दी के प्रचार-प्रसार. पर विपरीत प्रभाव ही पड़ा। वस्तुतः लोकप्रियता की दृष्टि से वही हिन्दी भाषा जन-जन तक पहुंच सकती है, जो सुगम और सुबोध है और इसे भारतीय आर्यभाषा के मध्ययुग के अन्तिम युग की भाषा माना गया है। इस प्रकार अपभ्रंश भाषा से ही पुरानी हिन्दी तथा इससे आधुनिक हिन्दी भाषा का विकास हुआ है। शब्द एवं धातुरूपों में नये-नये प्रयोग कर अपभ्रंश ने हिन्दी तथा आधुनिक आर्यभाषाओं के विकास की आधारभूमि उपस्थित कर दी है। अपभ्रंश का साहित्यिक क्षेत्र मध्यदेश है, जो कि हिन्दी का जन्मस्थान है। यह हिन्दी के विकास की पूर्वपीठिका है। इस प्रकार प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषायें विभिन्न कालों में विभिन्न विशेषकर उत्तर भारतीय भाषाओं को निरन्तर प्रभावित और विकसित करती रही हैं। अतः इन सबके विकास का इतिहास जानने के लिए प्राकृत-अपभ्रंश भाषाओं का अध्ययन आवश्यक है। यद्यपि प्राकृत-भाषा और इसका साहित्य अत्यधिक समृद्ध होने से भारतीय संस्कृति में इसका अपना विशिष्ट स्थान और महत्त्व है। इसे ११६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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