Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology
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पैशाचिकं
तलिताखिलतोसतयासतनं मदनानल-नील-मनान गुणं ।
नलिनारुण पात तलं नमते जिनजोइधतंसशिवंलभते ॥७॥ चूलिका पैशाचिकं
कलनालिकनातुल तप्पहलं लचनीकर चालुयशप्पसलं ।
ललनाचनकीतकुनलुचिलं दिन राच महंसमलामिचिलं ॥८॥ अपभ्रंश
सासयसुख्कनिहाणुनाहन, दिट्ठो जेहिंतऊं पुन्नविहूणउ । जाणुनिष्फल जम्मुतिहनरपसुहं ॥९॥ निम्मलतुहमुहंचंदु जेपहु पिख्कै पसरसिउं ।
इयनिरुदमआणंदतिहिं मनिसामी विप्फुरइ ॥१०॥ समसंस्कृत
हारिहारहरहासकुंदसुंदरदेहाभय, केवलकमलाकेलिनिलय मंजुल गुणगणमय। कमलारुणकरचरण चरणभरधरण धवलबल, सिद्धिरमणसंगमविलास लालसमलमवदल ॥११॥ भवदवनवजलदाह विमलमंगलकुल मंदिर, वामकामकरिकेलिहरणहरिवरगुणबंधुर । मंदिरगिरिगुरुसारसबलकलिभूरुह कुंजर, देहिमहोदयमेवदेवममकेवलिकुंजर ॥१२॥ इति जगदभिनन्दनजनहदिचंदनचन्द्रप्रभ जिनचंद्रवर ।
षड्भाषाभिष्टुतमममंगलयुत सिद्धिसुखानि विभोवितर ॥१३॥ • इति श्री चन्द्रप्रभस्वामि स्तवनं कृतिरियं श्रीजिनप्रभसूरीणा
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