Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 134
________________ आसी । सो बंभचेरवयं गहीअ । ठाणंग सुत्ते (५/२३४) एवमुत्तं - पंचतित्थयरा कुमारवासमज्झे वासित्ता मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, तं जहा - वासुपुज्जे, मल्ली, अरिट्ठणेमी, पासे, वीरे य । लोइय-विससु वि बालगवड्ढमाणस्स हिययं संपुण्णरूवेण विरयं आसी । तस्स हियए सयसा इमे भावा अहेसी ९. सरीरमाहु नाव त्ति जीवो वुच्चइ नाविओ । संसार अण्णवो वत्तो जं तरन्ति महेसिणो || २. इट्ठणिट्ठ अट्ठेसु मा मुज्झह ! मा रज्जह ! मा दूसह ! ३. समयो खलु णिम्मलो अप्पा । समयं मा पमाए । ४. जे एगं जाणइ ते सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ, से एगं जाणइ । सो बारसदिवस सत्तमासं अहिअं अट्ठावीसवासं कुमारत्तणेण गऊण मागसीस मासस्स कण्हपक्खस्स दसमीए तिहीए पव्वज्जं गेहिय पंचमुट्ठिलोयं करिय निग्गंथो जाओ । आगमे उत्तं च - ROD Jain Education International मग्गसिरबहुलदसमी अवरण्हे उत्तरासु णाधवणे । तदियव्ववणम्मि गहिदं महव्वदं वडमाणेण ।। - तिलोयपण्णत्ति ४/६६७।। तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दाहिणं वामेणं वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेत्ता सिद्धाणं णमोक्कारं करेइ, करेत्ता, “सव्वं मे अकरणिज्जं पावकम्मं” ति कट्टु सामाइयं चरित्तं पडिवज्जइ । (आयारचूला १५/३२) तदो णिग्गंथ भावं अंगीकरिय समणमहावीरो अप्पकालेण झाणावत्थाए एवं अणुभूओ - १२१ - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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