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६. घ को ख (मेघः > मेखो) ७. झ को छ (झर: > छलो, छरो)। ८. ढ को ठ (गाढम् > काठ)। ९. ध को थ (धारा > थारा), १०. भ को फ (रम्भा > रंफा, लंभा)। प्रतिमा को पटिमा, पडिमा।
शेष पैशाची की तरह। ख) चूलिका पैशाची का उदाहरण -
आचार्य हेमचन्द्र ने कुमारपाल चरित के अंतिम दो सर्गों में शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश भाषा के नियम उदाहरण सहित समझाये हैं। यहाँ प्रस्तुत है चूलिका पैशाची की गाथा का यह उदाहरण -
झज्झर-डमरूक-भेरी-ढक्का -जीमूत-घोसा वि। बह्मनियोजितमप्पं जस्स न दोलिन्ति सो धो॥१॥
अर्थात् झज्झर, डमरूस, भेरी और पटह इनका मेघ के समान गम्भीर घोष भी जिसकी ब्रह्म-नियोजित आत्मा को दोलायमान नहीं करता, वह धन्य है।
८. अपभ्रंश भाषा परिचय - अपभ्रंश प्राकृत और आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की मध्यवर्ती भाषा है अर्थात् आधुनिक आर्यभाषाओं की पूर्व की भारतीय आर्यभाषा की कड़ी का नाम अपभ्रंश है।
भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से कहा जाता है कि प्राकृत की अन्तिम अवस्था अपभ्रंश है। परन्तु स्वरूप की दृष्टि से प्राकृतों से अपभ्रंश का पार्थक्य स्पष्ट है।
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