Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 110
________________ . जैन कवियों और मुनियों ने लोक-कथा को आधार मानकर कथा-काव्यों और रचित काव्यों की रचना की। साथ ही मुनियों की अनुभूति ने अपभ्रंश में रहस्यवादी काव्य के स्वरूप को आधार प्रदान किया। परिणाम यह हुआ कि पहली बार प्रभूत मात्रा में साहित्य की रचना तो हुई ही, साथ ही काव्य रूप की दृष्टि से भी भारतीय वाङ्मय समृद्ध हो उठा। ____ महाकाव्यों और खंडकाव्यों की परम्परा में जैन मतावलम्बी महाकवि स्वयम्भू और धनपाल का अविस्मरणीय योदान है। इन रचनाकारों ने दोहा और चौपाई का सहारा लेकर नये काव्य रूप का विकास किया। यही काव्य-रूप सगुण भक्ति धारा के तुलसीदास और प्रेमाश्रयी शाखा के कुतुबन, मंझन और जायसी में मिल जाता है। यह परम्परा रीतिकाल की यात्रा पूरी करते हुए आधुनिक काल में प्रवेश पायी। - जैन कवियों ने जहाँ पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों को अपने काव्य का नायक बनाया, वहीं लोकजीवन से भी नायक और नायिकाओं का चयन किया और हिन्दी काव्य-परम्परा को चारित्रिक विधान का एक ठोस आधार प्रदान किया। यह आधार भक्ति-काल से होते हुए आधुनिक काल और समकालीन युग तक, यथावत् विद्यमान है। - अपभ्रंश साहित्य में रासक ग्रन्थों की भी संख्या हजारों में है। अपभ्रंश साहित्य एक साथ कई मोर्चों पर संघर्ष करता हुआ आगे बढ़ा। अपभ्रंश को पालि-प्राकृत के समान बहुत अधिक राजकीय संरक्षण भी प्राप्त नहीं था। अतः अपभ्रंश के विकास एवं प्रचार-प्रसार का अत्यधिक उत्तरदायित्व गुर्जर-आभीरादि जातियों एवं जैनाचार्यों के कन्धे पर था। इनके व्यापक एवं पर्याप्त जन समर्थन ने एवं अपभ्रंश की अपनी आन्तरिक ऊर्जा एवं प्राणवायु ने ही अपभ्रंश को संस्कृत एवं अन्य समकालीन भाषाओं के समक्ष प्रतिष्ठित किया। ९७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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