Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 108
________________ इस प्रकार इन सब भेद-प्रभेदों और पूर्वोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अपभ्रंशों और समकालीन जनभाषाओं (प्राकृतों) से ही विभिन्न आधुनिक आर्य भाषाओं का जन्म हुआ। विशेषकर वर्तमान हिन्दी भाषा इन्हीं अपभ्रंश भाषाओं से सीधे प्रभावित और उत्पन्न हैं। आधुनिक आर्य-भाषाओं के नामों की झलक हमें अपभ्रंशों के नामों से भी प्राप्त हो जाती है। इसलिए अपभ्रंश को मध्यकालीन एवं आधुनिक आर्य भाषाओं के बीच की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कड़ी माना गया है। च) अपभ्रंश की सामान्य विशेषतायें १. उकार बहुलता अपभ्रंश की प्रमुख विशेषता है। २. इसमें लिंग भेद प्रायः समाप्त हो गया। ३. सर्वनाम के रूपों में अल्पता दिखलाई देती है। ४. आद्य स्वर को पूरी तरह सुरक्षित रखना। अन्त्य स्वरों का ह्रास। ५. उपान्त्य स्वरों की मात्रा सुरक्षित। ६. समीपवर्ती स्वरों में संकोच के साथ विस्तार। ७. अ, इ, उ, एँ और औं - ये पाँच ह्रस्व स्वर और आ, ई, ऊ, ए, ओ - ये दीर्घ पांच स्वर माने गये हैं। किन्तु यहाँ ऋ, लु, ऐ और औ स्वरों का अभाव है। ८. आद्य व्यंजनों को सुरक्षित रखने की प्रवृति। ९. आद्य अक्षर में क्षतिपूरक दीर्धीकरण द्वारा द्वित्व व्यंजनों के स्थान पर एक व्यंजन का प्रयोग। १०. क्रियाओं का अर्थ व्यक्त करने के लिये कृदन्तरूपों का अधिक प्रयोग। ११. आत्मनेपद का सर्वथा अभाव। १२. क्त्वा प्रत्यय के रूप - कृ धातु के साथ कर + ईउ + करिउ, कर + इवी-करिवि, कर + एप्पि-केरप्पि, कर + एवीण-करेविणु आदि द्रष्टव्य हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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