________________
प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं का विकसित रूप ही हिन्दी है। अतः हिन्दी तो अपभ्रंश और प्राकृत भाषा की बेटी है । इस दृष्टि से प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं को यदि हिन्दी भाषा की जननी कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी ।
वस्तुतः आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का विकास अपभ्रंश के स्थानीय भेदों से हुआ है। श्री जगदीशप्रसाद कौशिक ने अपनी पुस्तक भारतीय आर्य भाषाओं का इतिहास (पृ. १६१ ) में अपभ्रंश से विकसित भाषाओं का निम्नलिखित उल्लेख किया है -
क) पूर्वी भाषाएं बंगला, ५. असमिया ।
ख)
ग)
घ)
ङ)
G
१. पूर्वी हिन्दी, २ . बिहारी, ३. उड़िया, ४.
पश्चिमी भाषाएं - गुजराती और राजस्थानी ।
उत्तरी भाषाएं - सिन्धी, लहन्दा और पंजाबी |
दक्षिणी भाषा
मराठी |
मध्यदेशीय भाषा पश्चिमी हिन्दी |
इस प्रकार अपभ्रंश भाषा ही हिन्दी और अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास के मूल में है । इसलिए हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं को अच्छी तरह से समझने के लिए अपभ्रंश भाषा का ज्ञान आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य भी है। क्योंकि हिन्दी ही नहीं अपितु अन्यान्य नव्य भारतीय आर्य भाषाओं की आधारशिला अपभ्रंश ही है।
Jain Education International
www
प्रो. प्रेम सुमन जैन ने अपनी “प्राकृत - अपभ्रंश तथा अन्य भारतीय भाषायें” नामक लघु पुस्तिका में उदाहरणार्थ कुछ प्राकृत शब्द और उनके हिन्दी रूपान्तरण की सूची प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि हिन्दी में प्राकृत - अपभ्रंश जैसी लोकभाषाओं के शब्दों की बहुलता है। यदि इन शब्दों की जानकारी हो तो हिन्दी के प्रत्येक शब्द की व्युत्पत्ति के लिए संस्कृत पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
१०४
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org