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३. क्रियाओं में दि और दे के स्थान पर ति और ते।
क्त्वा प्रत्यय के स्थान पर तून, त्थुन और धून पैशाची की प्रमुख विशेषताएँ हैं। इसमें मध्यवर्ती क, ग, च आदि वर्गों का लोप नहीं होता। ष्ट के स्थान पर सट जैसे कष्ट > कसट , र्य के स्थान पर रिय
और स्नान के स्न को सन आदेश होता है। सिनान जैसे - स्नानः सिनान प्राकृत की प्राचीन प्रवृत्ति की तरह स्वरों के मध्यवर्ती क्, ग, च्, ज्, त्, द्, य और व् का लोप नहीं होता। जैसे लोक > लोक, इंगार > अंगार।
नृसिंह शास्त्री कृत "प्राकृत शब्द प्रदीपिका" (प्रकाशक - उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद, १९९२) के अनुसार पैशाची प्राकृत की निम्नलिखित विशेषताएं हैं - नोण नो पैशाच्याम् - इस सूत्र के अनुसार ण को न तथा न्यण्यज्ञां सूत्र के अनुसार ब्रु को द्वित्व होता है। जैसे धन्यः > धो, प्राज्ञः > पञो, गण्यः > गो। अन्य विशेषताएं - त य द को त (मदः > मतो)। दृ को ति (यादृशः > यातिसो)। र्य, स्न, ष्ट को क्रमशः रिअ, सिन, सिट आदेश होता है। टु को तु विकल्प से होता है - कटुकः > कतुको, कटुको।श और ष को स (शेषः > सेसो), ष्ट्व को ठून, त्थून आदेश (कृष्ट्वा > कठून, कत्थून)। शेष शौरसेनी की तरह। ख) पैशाची प्राकृत का उदाहरण
यति अरिह-परममंतो पढिय्यते कीरते न जीवबधो। - यातिस-तातिस-जाती ततो जनो निव्वुतिं याति॥
अर्थात् यदि कोई अर्हत के परम मन्त्र का पाठ करता है, जीव-वध नहीं करता, तो ऐसी-वैसी जाति का होता हुआ भी वह निर्वृति को प्राप्त होता है। (कुमारवालचरियं, सर्ग ८)
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