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६. पैशाची प्राकृत । पैशाची एक बहुत ही प्राचीन प्राकृत है। यह किसी प्रदेश विशेष की भाषा नहीं थी, अपितु जन-जाति विशेष की भाषा थी। मुख्यतः यह जन-जाति कैकय, शूरसेन, पाण्ड्य, काञ्ची और पांचाल में निवास करती रही होगी या भ्रमण करती रही होगी। इसका प्रचार भी इन्हीं प्रदेशों में रहा। सम्भवतः यह भ्रमणशील जाति भारत में आधुनिक बंजारों और हंगरी में जिप्सी जातियों की पूर्वज रही हो।
देश के उत्तर-पश्चिम प्रान्तों के कुछ भाग को पैशाच देश भी कहा जाता रहा है। मार्कण्डेय ने इसे शूरसेन और पांचाल की भाषा कहा है। वाग्भट्ट ने पैशाची को भूतभाषा कहा है। इसके अनुसार यह पिशाच जाति के लोगों की भाषा थी।
___ सर जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार पैशाची का आदिम स्थान उत्तरपश्चिम पंजाब अथवा अफगानिस्तान प्रान्त है। यहीं से इस भाषा का विस्तार अन्यत्र हुआ है। पिशाच, शक और यवनों के मेल की एक जाति थी, जिसका निवास स्थान सम्भवतः भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश में रहा है, उन्हीं की बोली का आधार पैशाची प्राकृत है। वैसे भी पंजाब, सिन्ध, ब्यूचिस्तान और कश्मीर की भाषाओं पर इसका प्रभाव आज भी दिखता है।
चीनी तुर्किस्तान के खरोष्ठी शिलालेख तथा उद्योतनसूरि रचित कुवलयमाला कथा में इसकी विशेषताएँ देखने को मिलती हैं। गुणाढ्य की बृहत्कथा पैशाची भाषा की प्रमुख रचना थी, जो आज उपलब्ध नहीं है। किन्तु इसके रूपान्तर उपलब्ध हैं। क) पैशाची की सामान्य विशेषतायें १. पैशाची में अनादि तीसरे और चौथे वर्गों के स्थान पर उसी वर्ग
के पहले और दूसरे वर्ण हो जाते हैं। यथा - गकनं = गगनम्,
मेखो = मेघः, राचा = राजा। २. ज्ञ और न्य को , ञ, अं, ण को न होता है।
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