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पाइयकव्वस्स नमो पाइयकव्वं च निम्मियं जेण। ताहं चिय पणमामो पढिऊण य जे वियाणन्ति॥ वज्जा०३१॥
- प्राकृत काव्य को नमन और उनको, जिनके द्वारा प्राकृत काव्य बनाया (रचा) गया है – उन्हें नमस्कार है और जो पढ़कर उन्हें जान लेते हैं - उन्हें भी प्रणाम करते हैं।
सयलाओ इमं वाया विसंति एत्तो य णेति वायाओ। एंति समुदं चिय णेति सायराओ च्चिय जलाइं॥ गउड० ९३॥
- जिस प्रकार जल समुद्र में प्रवेश करता है और समुद्र से ही वाष्य रूप से बाहर निकलता है, इसी तरह प्राकृत भाषा में सब भाषाएं प्रवेश करती है और इस प्राकृत भाषा से ही सब भाषाएं निकलती हैं।
जे लक्खणे ण सिद्धा ण पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु । ण य गउणलक्खणसदिसंभवा तें इह णिबद्धा। हेम०१.३॥
- जो शब्द न तो व्याकरण से व्युत्पन्न है और न संस्कृत-कोशों में निबद्ध हैं तथा लक्षणा शक्ति के द्वारा भी जिनका अर्थ प्रसिद्ध नहीं है, मात्र रूढ़ि पर अवलम्बित है, ऐसे शब्दों को देशी कहा जाता है।
अण्णे वि हु होन्ति छणा ण उणो दीआलिआसरिच्छादे। जत्थ जहिच्छं गम्मइ पिअवसही दीवअमिसेण॥सर.क० ५.३१५।।
- उत्सव बहुत से हैं, पर दीपावली के समान कोई उत्सव नहीं हैं। इस अवसर पर इच्छानुसार कहीं भी जा सकते हैं और दीपक जलाने के बहाने अपने प्रिय की वसति में प्रवेश कर सकते हैं।
उद्धच्छो पिअइ जलं जह जह विरलंगुली चिरं पहिओ। पाआवलिया वि तह तह धारं तणुअंपि तनुएइ॥
- गाथासप्तशती, २/६१ - ऊपर की ओर नयन उठाकर हाथ की अंगुलियों को विरलकर पथिक पानी पिलाने वाली के सौन्दर्य का पान करने के लिए, बहुत देर
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